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"साथ साथ रहते रहते हम,  सभी दुर्दिनों को जीते थे ! स्वेद भरे वस्त्रों के वे सब,  जेब…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

"लाल  हुई हैं नभ की आँखें, देख शहादत कोई  खोकर अपना लाल लग रहा, धरती भी है रोई || |…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

" आपकी ये  प्रस्तुति  मार्मिक है , सारे ज्ञान ,दर्शन  के बावजूद  मौत का कडवा सच विचलि…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

"कांधे पर लेकर जायेंगे। मुक्ति धाम तक पहुँचायेंगे॥ मरने पर तारीफ करेंगे। राम नाम को स…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

" / छन्न पकैया छन्न पकैया क्यों इतना इतराये / हर कोई ख़ाली आया है ख़ाली जग से जाये /..…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

"प्रदत्त चित्र को बखूबी सामयिक घटनाओं से जोड़ा है आपने , हाल की घटनाओं ने सभी को फिक्र…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

" प्रदत्त  चित्र को बारीकी से पकड़ना हमेशा से ही आपके छंदों की खूबी रही है ,और यहाँ भी…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

" गीत [सार छंद ] शाम हुई रवि घर को जाता ,तन तज मानव जाता  जाते मानव को रवि देखो ,बात…"

pratibha pande replied Feb 19, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 58

598 Feb 21, 2016
Reply by मिथिलेश वामनकर

"आगे ही नित बढती जाए | नारी अपनी मंजिल पाए || हे प्रभु वह सम्मान दिलाना | चाहे नारी ज…"

pratibha pande replied Jan 16, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 57

203 Jan 16, 2016
Reply by Ashok Kumar Raktale

"भाव भरा जब कुंदन मन हो तब हम ढलती हाला वक्र दृष्टि को देख दहकती बन जाती हूँ ज्वाला प…"

pratibha pande replied Jan 16, 2016 to "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 57

203 Jan 16, 2016
Reply by Ashok Kumar Raktale

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Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
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Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
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दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
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अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
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Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
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