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क्यूँ रोकते द्रौपदी को

जब कर्ण लक्ष्य भेद में माहिर था

अपमान कराते द्रौपदी से उसका, जानते थे वो ज्येष्ठ पुत्र है कुंती का||

 

युद्ध से पहले क्यूँ न बताते

रंगमच के बाद ही क्यूँ न बताते

सुतपुत्र नहीं तू ज्येष्ठ पुत्र है, मेरी बुआ तू कुंती का||
 

क्या सच है कृष्णा

शान्ति दूत बन आएं थे

युद्ध नहीं वो शान्ति चाहते, क्या ये सब उनके भाव बतलाएँ थे।।

 

जहर घुलता जब बहती हवा में

विष जुबा में घुलता है

अच्छे-अच्छे कड़वे होते, वाणी में मधु-सुधा न कहीं मिलता है।।

 

दोहरी भूमिका न ज्यादा चलती

क्यूँ छवि न अपनी बदल सके

युद्ध तो पहले निश्चित था ये, भरी सभा में बस शब्दों के थे वार चले।।

 

मिले पाँच गाँव नहीं तो क्या

जा पांडवों को समझाएँ थे

वापस चलो अज्ञातवास में, न वापस फिर लौट कर आयेंगे।।

 

नहीं लेंगे अधिकार भी अपना

पांडव वन को फिर जायेंगे

अधिकार मांगने जीवन का, न वापस कभी फिर आयेंगे।।

 

क्यूँ न कहा था केशव ने भी

मैं युद्ध नही होने दूँगा

शान्ति हेतु आया हूँ मैं, बिन लिए हक के वापस जाऊँगा।।

 

क्या दे नही सकते पांडव बलिदान ये

छोड़ कुरुक्षेत्र न जा सके

लाखों की जान की ख़ातिर, पाँच जान न गँवा सके।।

 

क्या विश्व शान्ति की ख़ातिर

बिन राज के रह सके

इतना दु:ख तो सह चुके थे, पांडव क्यूँ थोड़ा और न सके।।

 

खुश रहो तुम सारा राज्य पाकर

दु:ख आजीवन वो पायेंगे

विश्व में शान्ति रखने को, वो सब कुछ सहते जायेंगे।।

 

दिल में बसेंगे हर जन के वो

बस सम्राट नहीं कहलायेंगे

काल ग्रंथ के पन्नों पर, एक दिन वो श्रेष्ठ पद को पायेंगे।।

 

युगपुरुष बन क्यूँ वो समाज के

मिलकर थे न कहे सके

लाखों के जीवन की रक्षा हेतु, प्राप्त पांडव बिन राज्य के मर जायेंगे।।

 

सभी यौद्धा चाहते शायद 

संग्राम में बाहुबल आजमाएंगे

पांडव कौरव तो एक बहाना, धर्म-अधर्म समर में मिलकर साथ निभायेंगे।।

 

ईश्वर होकर भी दु:ख हरे न

पांडवों को जिनसे गहरा रिश्ता था

चमत्कार भी न कोई करते, जग जिनको ईश्वर कहता था||

 

कर्म का मोल था सबको सिखाना

कृष्ण का मकसद इतना था

नई पीढ़ी को नई शिक्षा देना, धर्म रक्षा का पाठ सिखाना था||

 

मर नहीं सकते जो वीर थे

उनको छल से मरना था

धरणी का था भार हरना, जिसमे कर्म सभी को करना था||

 

भूमि पर अवतार धरे जो

शायद नियति उनको रोका था

निर्धारित था ये युद्ध पहले से, सबको इसमे मोहरा बनना था||

 

भूमिका निभाना सभी को अपनी

नियति सबकी बन गया था

सूत्रधार बने कृष्ण तो केवल, वीर-महावीरों को इसमें मरना था||

स्व्रचित व मौलिक रचना 

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