हमें  गंगोदक सवैया  के बारे में जानकारी हो चुकी है जिसका विधान रगण X 8  होता है. 
 इस वृत से एक रगण हटा कर इसके आदि में एक गुरु जोड़ दिया जाय तो मंदारमाला सवैया होना माना जाता है.
 यानि,  गुरु + रगण रगण रगण रगण रगण रगण रगण 
 या, ऽ + ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ ऽ।ऽ 
उपरोक्त विन्यास को ध्यान से देखा जाय तो तगण की सात आवृतियों के पश्चात एक गुरु का होना भी निश्चित होता है. 
 यानि, ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। ऽऽ। + ऽ 
अर्थात मंदारमाला सवैया = गुरु + रगण X 7 = तगण X 7 + गुरु 
चूँकि, गणों की नियत आवृति को वृत कहते हैं अतः हर वृत का एक विशेष वाचन प्रवाह बन जाता है. अतः यति वाचन-प्रवाह में स्वयमेव स्थान ले लेती है. फिरभी, 12-10 की यति मान्य है. 
उदाहरण हेतु भानु कवि कि के दो पद प्रस्तुत हैं -
 मेरी कही मान ले मीत तू जन्म जावै वृथा आप को तार ले ।
 तेरी फलै कामना हीय की नाम मंदारमाला हियेधार ले ॥
 
 प्रथमपद का विन्यास (तगण के लिहाज से) -
 मेरी क (गुरु गुरु लघु)  / ही मान (गुरु गुरु लघु) / ले मीत (गुरु गुरु लघु) / तू जन्म (गुरु गुरु लघु) / जावै वृ (गुरु गुरु लघु) / 
 <-----------1-----------> <------------2-----------> <---------3--------------> <--------------4----------> <-----------5-------------> 
 था आप (गुरु गुरु लघु) / को तार (गुरु गुरु लघु) / ले (गुरु)
 <----------6------------><------------7-----------> <---8----> 
 
 उपरोक्त विन्यास से संबंधित विशेष कहने के लिए नहीं है. 
 
 
 ज्ञातव्य :
 प्रस्तुत आलेख प्राप्त जानकारी और उपलब्ध साहित्य पर आधारित है.
 
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