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देखि मचल बाटे इहा भागमभाग ,
केहू उरावत बा बिना बतलब के ,
केहू मतलब खातिर खोजत बा ,
केहू के हिस्सा में कुछुओ नाइखे ,
केहू मरत बा बुझावे खातिर ,
भैया हो आपन पेट के आग ,
जहा बाटे पाईसा उहा बढ़त बा ,
चाही जहा पाईसा उहा नइखे जात ,
जेकरे पाकिट में बाटे पाईसा ,
उहे ता पाईसा पीटत बा ,
देखि मचल बाटे इहा भागमभाग ,
आवत बाटे राशन में दिआई गरीबन के ,
उ काम आवत बाटे भाई अमीरन के ,
चीनी मिळत नइखे गेहू सडल बाटे ,
ख़तम हो गइल सुनला दुकान पर जाते ,
भूखे पेट अब सुतब गरीबी के नाते ,
हमार बात कुछ आउर बचवा सुतत नइखे ,
दू दिन से ओकरा पेट में कुछु पडल नइखे ,
कैसे बुझी गरीबन के गुरु पेट के आग ,
देखि मचल बाटे इहा भागमभाग ,

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हमार बात कुछ आउर बचवा सुतत नइखे ,
दू दिन से ओकरा पेट में कुछु पडल नइखे ,
कैसे बुझी गरीबन के गुरु पेट के आग ,
देखि मचल बाटे इहा भागमभाग

हमेशा अइसन - दिल के छू जाए वाला रचना बा । बहुत नीमन रचना बा ।
बढ़िया रचना, सार्थक प्रयास, जय हो,
जहा बाटे पाईसा उहा बढ़त बा ,
चाही जहा पाईसा उहा नइखे जात ,
जेकरे पाकिट में बाटे पाईसा ,
उहे ता पाईसा पीटत बा ,
देखि मचल बाटे इहा भागमभाग ,

रवि जी, हमेशा के तरह एगो अउर मन के छू के दिल में उतर जाए वाला रचना प्रस्तुत कइले बानी । सामाजिक असमानता के बहुत बढ़िया चित्रण । बहुत धन्यवाद ।

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