For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रज्जू रजक के जवान खस्सी (बकरा) गाँव के मनबढ़ूवन के आँख के किरकिरी बन गइल रहे, जब खस्सी पर नजर जाए तब जीभ लपलपा जात रहे, सांझ के संतोष पांडे के ट्यूबेल पर ७-८ लइकन के मंडली जुटल आ तय भइल कि आज रात के अन्हारिये में खस्सी उठा लिहल जाव. असलम के जिम्मेदारी दियाइल कि खस्सी आवते गुरिया बना दिहे, मनोज बबुआ तेल मसाला के इंतजाम करिहें आ चाउर पप्पू अपना घर से चोरा के ले अइहन | जोजना के मुताबिक रात के अन्हार में काम पूरा हो गइल, सब जाना मिलके कालिया भात खाईल |


होत सबेर रज्जू रजक के दुआर पर हल्ला सुनाइल, उनकर मेहरारू दहाड़ मार के रोअत रहली. खस्सी दुआरे पर बान्हल रहे....रज्जू रजक कहत रहले कि उनकर गदहा के बच्चा रात में गायब हो गइल बा, बहुत खोजलो पर मिलत नइखे |


एने मनबढ़ू मंडली के हालत खराब. समझ में आ गइल कि रात के अन्हार में ई लोग गदहा के बच्चा मार के खा गइल बा, अब का होई, बड़हन पाप भइल, मनोज कहले कि अब त एह पाप के प्रयाश्चित करे के पड़ी, पप्पू आ मनोज गइल लोग रामायण पांडे के हिया, अउर रात के सब बात बता दिहल लोग, मनोज कहले कि बाबा कुछ उपाय बताईं, बाबा के त जईसे मोका मिल गइल, कहले कि यज्ञ करावे के पड़ी, २१ गो ब्रह्मण के भोजन अउर दक्षिणा कुल १२-१५ हज़ार के खर्चा, लईका पाटी के हावा खराब, कुछ सूझाए ना जे का कइल जाव, तले मनोज के खुराफाती दिमाग में कुछ आइडिया आइल आ बाबा से कहले "बाबा हो ऊ गदहा पाटी में संतोषो शामिल रहले"  संतोष पांडे, रामायणे पांडे के बेटा रहले, बाबा उलटा फस गईले |


बाबा कुछ देर सोचले ओकरा बाद कहले कि ई बात बा ?  तब " ८-१० लईका एक संतोष, गदहा खईला में कुछऊ ना दोष" जा लोग बबुआ, फेन अइसन गलती जन करिहऽ लोगन |

(सुनल सुनावल बात पर आधारित)

हमार पिछुलका पोस्ट => भोजपुरी लघु कथा :- जिवुतिया के वरत

 

Views: 3105

Replies to This Discussion

बागी जी प्रणाम,
जब हमनी क छोट रहलीँ जा त फुआ ए कहानी के कई बेर सुनवले रहलीँ। लेकिन पूरा अर्थ समझ ना आवे। अब पूरा समझ आवेला। कहानी के आप इहाँ पोस्ट क के अच्छा कइलीँ। जे ना जानत होई उहो आनन्द ले सकी।

जी आशीष भाई, रौआ ठीक कहत बानी, इ कहानी सुनल सुनावल बात के आधार पर ही लिखल गइल बा |

ये कहानी के अइसहू कहल जला की एक बेर घोबी के गदहा  गलती से गाव में आ गइल , ओकर दुनु अगिला गोर बंधाल रहे आठ दस गो लईका ओके मारे लागल लोग और उ गदहा मर गइल , गाव के सब लोग बिटोराइल और पंडित जी के लगे गइल तब पंडित जी कहलन गावं में गदहा मरल बा आकाल आ जाई तब सब कोई कहलस बाबा येहर उपाय बताई ता पंडित जी कहलन एमे बहुत खर्चा बा , तब गाव के लोग कहलस कवनो बात ना जेकर जेकर लईका रहल हा उ लोग खर्चा करी राउआ खर्चा बताईं , पंडित जी हाथ पर खर्चा जोर के जैसाही बोलके रहले तबाही एगो लईका बोलल पंडित जी के बेटा संतोषो रहलन. इ बात जब पंडित जी के कान में गइल हा त ऊ सोचे लागले खर्चा हमारो के देबे के पड़ी तब पंडित जी कहलन - सात - पांच लईका एक संतोष, गदहा मरला के कवनो ना दोष" जाई लोग पंडित के हाथ से गदहा मरेला त दोष ना लगे, ( ई कहानी हम आपना बाबू जी से सुनले रहनी )

बागी जी लघु कथा पढ़कर बहुत मज़ा आया. हालाकी इसे मुझे दो बार पढ़ना पड़ा तब पूरी बात समझ मे आई क्योकि कुछ शब्दो का अर्थ नही समझ आ रहा था वेसे भोजपुरी समझ मे आती हे मध्यप्रदेश के मालवा मे जो मालवी और निमाडी बोली जाती हे उससे भी काफ़ी शब्द मिलते हे भोजपुरी मे. कुलमिलाकर बहुत पसंद आई ये लघु कथा आगे भी कुछ इसी तरह का पढ़ना चाहूँगी.

धन्यवाद मोनिका जी, यह कथा हास्य प्रधान है, भोजपुरी में ही एक लघु कथा पूर्व में लिख चूका हूँ "जिवितिया के व्रत" आगे से कोशिश करूँगा की कुछ कठिन भोजपुरी शब्दों का हिंदी अर्थ भी लिख दूँ |

पाँच-सात लइका एक संतोष, गदहा मरले कुछऊ ना दोष..  ...  ....  हा हा हा हा..

लइकाईं के ऊ बखत-बेरा आ कुल्हि काथा-कहानी इयाद आवे लागल, जब बड़-बूढ़ कोरा में ओटले सूते घरिया खटिया प सुनावस जा.  बहुत सुन्दर आ अनुकरणीय प्रयास भइल बाग़ीजी.  एह तरीके पुरान आ गाँव-जवार में प्रचलित काथा-कहानी के साझा कइल बहुत निकहा कोसिस भइल बा. 

भाईबाग़ीजी,  अइसना काथा-कहानी खातिर एही भोजपुरी-साहित्य के अन्तर्गत अलगा एगो कोना बनावल जा सकेला. एह तरीके काथा-कहानी के संग्रह के एगो प्रयास होखो. 

काथा के साझा कइला खातिर रउआ बहुत-बहुत बधाई.

 

बड़ा बढ़िया आ गाव घर मे  प्रसिद्ध कहनी इ   एकरा के कई बेर आ कई आदमी के मुह से सुनले बानी एकरा के लिखे वाला जे बनावे वाला जे  भी होई बड़ा गुनी आदमी होई |.......निचे  कथा कहानी खातिर अलग कोना बनावे वाली सौरभ जी के बात भी जाएज ब़ा |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service