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सुनीं सुनीं सरकार 

हम बानी बेरोजगार 

तनी सुनी ना पुकार 

देई जिनिगी सुधार 

फारम भरले साल बीतल 

जिनिगी बेहाल बीतल 

तोहरा के का बुझाई 

जेकर खुशहाल बीतल 

पढ़त पढ़त चानी प क

झर गईल बार 

सुनी सुनी सरकार

सुधि न हमार लिहलीं

वादा प गुजार देहलीं

करम कुकरम से

आशा क दीवार ढहलीं 

मंगनी रिजल्ट रऊआ 

फोड़ली कपार

सुनी सुनी सरकार 

 

सुनी ई कुरीति हवे 

राऊर नाही जीत हवे 

शासन जेके बुझत हई 

बालू के जी भीत हवे 

ढेर दिन टिकी नाही 

राउर गुबार 

सुनी सुनी सरकार

सबकर इलाज होला 

रउरो इलाज हुई 

सुनीं राऊर कुर्सी प 

जनता क राज होई

तोहरो रिजल्ट देई 

जन दरबार 

नाही रही सरकार 

नाही रही सरकार 

राउर हो जाइब

सुनी सुनी सरकार

मौलिक एवं अप्रकाशित

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"जी, उचित है। बहुत बढिया "
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहे सिरजे आपने, करते जल गुणगान। चित्र हुआ है सार्थक, इनमें कई निदान।। सारे दोहे आपके, निश्चित…"
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मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"धूप छांव में यूं भला, बहुत अधिक है फर्क। शिज़्जू भाई कर रहे, गर्मी में भी तर्क।। तृष्णा की गंभीरता,…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बहुत सुगढ़ दोहावली हुई है प्रदत्त चित्र पर। हार्दिक बधाई।"
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सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"मेघ, उमस, जल, दोपहर, सूरज, छाया, धूप। रक्ताले जी आपने, दोहे रचे अनूप।।  नए अर्थ में दोपहर,…"
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