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छोटा सा घर अपना 

एक छोटा सा आँगन 
उसके आगे  बगिया 
सुन्दर लगे   है  उपवन 
पेड़ लगे फल फूल लगे 
तोता मैना बने सगे 
सब्जियों की  है क्यारी
उड़ रही तितलियाँ प्यारी 
सब्जी से बनते व्यंजन 
भँवरे   करते गुंजन 
गिलहरी रानी फुदक रही 
अमरुद दांतों से कुतर रही
तितली पीछे भागा राघव 
पीछे दौड़ा उसके माधव 
माँ ने आवाज लगायी 
तितली न पकड़ो भाई 
संख्या में  कम हो गयी 
गोरैया जैसी  खो गयीं 
करती जैसे  तेरी रक्षा 
इन्हें चाहिये अति सुरक्षा   
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
१९-१२-२०१२ 

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Replies to This Discussion

रंग बिरंगी तितलियों को उपवन से बच्चों के लिए शब्दों में लाने के प्रयास के लिए बधाई आ. प्रदीप सिंह कुशवाहा जी 

माँ ने आवाज लगायी 

तितली न पकड़ो भाई 
संख्या में  कम हो गयी 
गोरैया जैसी  खो गयीं ...... सुन्दर बात 

आदरणीय प्रदीप जी, आपकी बाल-कविता के लिए आपका सादर धन्यवाद. बच्चों की रचनाएँ वस्तुतः बच्ची रचनाएँ नहीं होतीं. इनका होना एक अलग प्रबोध की मांग करता है. आपका उत्साह हम सभी के लिए प्रेरणा है.

सादर

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