आदरणीय साथिओ,
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आदरनीय तेजवीर जी , कमाल की लघुकथा आप जी ने बुनी, हर धागे का रंग निखर कर दिखाई दे रहा था, जैसे इस लघुकथा में हरेक नियम ऐसा धागा जो मुत्यु के बाद भी जाल बन रहा हो
हार्दिक आभार आदरणीय मोहन बेगोवाल जी।आपकी उत्साह वर्धक टिप्पणी के लिये पुनः आभार।
आदरणीय TEJ VEER SINGH जी बहुत बहुत बधाई अच्छी लघुकथा सादर।
हार्दिक आभार आदरणीय Asif zaidi जी।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय तेजवीर जी ।बधाई ।
हार्दिक आभार आदरणीय कनक जी।
आदरणीय तेजवीर जी, रचना का कथ्य बहुत सुंदर चुना है आपने. हालांकि दर्शाए कुछ गये नियम और आर्थिक शोषण के कुछ बिंदु तो अभी भी शमशान भूमि में मूक रूप से विद्यमान है, लेकिन फिर भी कथा में किया गया कटाक्ष अच्छा बन पडा है और आजकल के प्राइवेटीकरन पर सही प्रश्न उठाता है, बधाई स्वीकार करे भाई जी
हार्दिक आभार आदरणीय भाई वीर मेहता जी।
इस बेहतरीन रचना के लिए बहुत बधाई आदरणीय तेज़ वीर जी ,सादर
हार्दिक आभार आदरणीय बरखा जी।
आदरणीय तेजवीर जी बहुत बधाई ,अच्छा चित्रण
हार्दिक आभार आदरणीय अंजली जी।
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