For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'अब तुम्हारे हवाले ... बहिनों' ( संस्मरण)

उन दोनों की मैं बहुत शुक्रगुजार हूं। बताऊं क्यूं? क्योंकि इस बार के गणतंत्र दिवस में उन दोनों ने मुझे भी अपने साथ शामिल कर ही लिया। जिस तरह उन दोनों को सजाया-संवारा गया, राष्ट्रीय ध्वज से गौरवान्वित किया गया; उसी तरह मुझे भी! उन दोनों को गुड्डू ही चलाता है। मुझे तो केवल उसके अब्बूजान 'मिर्ज़ा साहिब' ही कभी-कभार चलाते हैं। लेकिन घर के अन्य सदस्यों के इरादों के विपरीत उन दोनों ने मुझे न तो किसी को बेचने की बात सोची और न ही किसी को दी। एक बार तो एक कबाड़ी के सामने मेरी बोली लगाई गई! लेकिन सात सौ रुपए में सौदा तय न हो पाने पर मैं कबाड़ख़ाने में जाने से बच गई। उस दिन के बाद पता नहीं क्या हुआ; गुड्डू के अब्बूजान अतीत की बातें याद कर इतने भावुक हुए कि मुझे नहला धुलाकर मेरी मरम्मत करा कर मुझे सुबह-शाम चला कर व्यायाम करने लगे। नतीज़ा यह हुआ कि गुड्डू ने भी मुझ पर फिर से अपना प्यार बरसाना शुरू कर दिया।
उसकी तरह आख़िर मुझे भी याद है कि किस तरह मिर्ज़ा साहिब नन्हे गुड्डू को मेरे हैंडिल पर टंगी डोलची में बिठा कर घुमाने ले जाते थे। थोड़ा बड़ा होने पर मेरे सीट वाले डंडे पर बाल-सीट में गुड्डू को स्कूल, बाज़ार, हर जगह ले जाया जाता था। वे गोल्डन दिन न तो मैं भूल सकती हूं और न ही गुड्डू और उसके अब्बूजान।
मैं जानती हूं कि वक़्त के साथ नये ज़माने की साइकलों का दौर शुरू होते ही मेरी गिनती "एन्टीक़" वस्तुओं में होने लगी और गुड्डू के लिए आधुनिक साइकलें बारी-बारी से मिर्ज़ा साहिब को ख़रीदनी ही पड़ी। अब तो वह गिअर वाली साइकल ही चलाता है नई बनी चिकनी सड़कों पर। मैं कभी घर के स्टोर-रूम में, तो कभी गोदाम में बांधी गई। लेकिन मिर्ज़ा साहिब मुझे अक्सर याद करते रहते और कभी न कभी मुझे उपयोग में लाते ही। ख़ासकर तब जब उनके स्कूटर का पेट्रोल ख़त्म हो जाता या जब उन्हें अपनी तोंद कम करने की फ़िक्र होने लगती!
ख़ैर, इस बार के गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर गुड्डू के कहने पर ही मुझे भी नहलाया-धुलाया गया। तिरंगे फ़ीतों और झंडों से मैं भी गौरवान्वित हुई। दरअसल उस दिन मिर्ज़ा साहिब ने गुड्डू को पुराने एलबम में मुझ पर सवारी करते नन्हे गुड्डू की ढेर सारी सुंदर फोटो दिखाईं थीं। तो यह तय हुआ कि स्कूल से लौट कर अपनी-अपनी साइकलों से छब्बीस जनवरी की परेड देखने तात्यांटोपे मैदान जायेंगे और वहां से वीर सावरकर पार्क घूमने जायेंगे। सो घर की तीनों साइकलें पहले से ही तैयार कर लीं गईं थीं। गणतंत्र दिवस के दिन गिअर वाली बड़ी साइकल गुड्डू ने चलाई, छोटी वाली साइकल उसके पड़ोसी दोस्त गोविंद ने और एन्टीक़ साइकल मिर्ज़ा साहिब ने ख़ुद चलाई। भीड़भाड़ से और ट्रैफ़िक से बचने के लिए गलियों से होते हुए शॉर्ट-कट से वे लोग परेड मैदान में पहुंचे। बड़ा मज़ा आया। गुड्डू के और मिर्ज़ा साहिब के दोस्त उन्हें और हमें बड़े आश्चर्य और दिलचस्पी से देख रहे थे। मैं किसी नई साइकल से कम सुंदर नहीं लग रही थी। आख़िर घर पर मेरी भी बराबर देखभाल करते थे मिर्ज़ा साहिब और उनका लाड़ला बेटा 'गुड्डू'!
उस समय की ख़ुशी मैं बयान नहीं कर सकती, जब मिर्ज़ा साहिब ने खुले दिल से सबके सामने मेरी बढ़िया सेहत और बढ़िया परफोर्मेंस की तारीफ़ की और गुड्डू ने भी मुझे कुछ देर चलाया अपने दोस्त को डंडे में बिठा कर। मुझे लगा कि यह वही नन्हा गुड्डू है, जिसे मिर्ज़ा साहिब मुझ पर बिठा कर घुमाने ले जाया करते थे। घर लौट कर वापस मुझे घर की गैलरी में बांध कर भले रख दिया गया, लेकिन मुझे इस बात का संतोष और ख़ुशी है कि मैं आज भी इस प्यारे से परिवार की बहुमूल्य पुरानी सम्पत्ति यानी "एन्टीक़ कलेक्शन" में शामिल हूं, समय-समय पर मेरा सदुपयोग किया जाता है बेचने के बजाय। बस अपनी दोनों साइकल बहिनों से यही कहती हूं कि "अब तुम्हारे हवाले इनकी सवारी और व्यायाम बहिनों !"

(मौलिक, अप्रसारित व अप्रकाशित)

Views: 567

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाशजी  दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । छंद पर आपका प्रयास सराहनीय…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । खिल उठता है बुझा हुआ मन, आते जब…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी चित्रानुकूल बहुत सुन्दर छंद सृजन। हार्दिक बधाई "
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह...दीपोत्सव के हर आयाम को समेट लिया है आपके इस गीत ने।अंतिम छंद का भाव बहुत सार्थक। हार्दिक बधाई…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी एस टी का जिक्र रोचक बन पड़ा है। दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, दीपावली अन्नकूट भाई दूज और छठ की शुभकामनाएँ । सरसी छंद की बीस पंक्तियों के लिए…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ हर बरस हर नगर में होता, अरबों का व्यापार।         …"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  ______ जगमग दीपों वाला उत्सव,उत्साहित बाजार। जेब सोच में पड़ी हुई है,कैसे पाऊँ…"
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"चार पदों का छंद अनोखा, और चरण हैं आठ  चौपाई औ’ दोहा की है, मिली जुली यह ठाठ  विषम…"
15 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद * बम बन्दूकें और तमंचे, बिना छिड़े ही वार। आए  लेने  नन्हे-मुन्ने,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
" प्रात: वंदन,  आदरणीय  !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service