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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 (घर-आँगन)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-111 
(घर-आँगन) 
अवधि : 29-06-2024 से 30-06-2024 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, 10-15 शब्द की टिप्पणी को 3-4 पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पाए इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ-साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
.    
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सकें है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
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.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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ऑनलाइन शॉपिंग ने खरीदारी के मापदंड ही बदल दिये हैं।जरूरत से बहुत अधिक संचय की होड़ लगी है।अच्छा विषय..हार्दिक बधाई आदरणीय..शीर्षक पर फिर विचार करें

आदाब। रचना पटल पर आपकी उपस्थिति, अनुमोदन और सुझाव हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी। जूते विषयक रचना पर ही शीर्षक केंद्रित कर दिया था अधिक कटाक्ष या व्यंग्य करने की दृष्टि से।

आशा है अवश्य ही शीर्षक पर विचार करेंगे आदरणीय उस्मानी जी।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर

बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी।

मेरे कहे को मान देने के लिए आपका आभार।

घर-आंगन

रमा की यादें एक बार फिर जाग गई। कल राहुल का टिफिन बनाकर उसे कॉलेज के लिए भेजते हुए रमा को याद आया कि चिड़िया का दाना पानी भी तो करना था।
वो राहुल का कॉलेज का आखिरी दिन था। उसके बाद उसे उच्च शिक्षा के लिए बाहर जाना था। इधर चिड़िया की अलग चिंता जिसकी चोट को रमा ने देखा और चिड़िया के पंख में लेप लगाकर उसे ठीक किया था। आंगन में तड़पती चिड़िया कब आंगन में नाचने लगी और उसके जीवन का हिस्सा बन गई, रमा को ये तो याद ही नहीं रहा। वो रोज चिड़िया को दाना पानी देती, उसका खयाल रखती।

आज राहुल को हॉस्टल जाना है। चिड़िया के पंख भी ठीक हो गए हैं।
रमा आंगन में आई तो देखा कि चिड़िया उड़ चुकी थी। आंगन सूना हो चुका था।

राहुल हॉस्टल जा चुका था। घर के भीतर मौन चीख रहा था।

घर और आंगन दोनों रमा को जैसे काटने को दौड़ रहे थे। न घर में कोई था और न आंगन में, जिसके लिए वो दाना पानी की व्यवस्था करती।

घर और आंगन दोनों में सन्नाटा पसरा था।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

नमस्कार। प्रदत्त विषय पर एक महत्वपूर्ण समसामयिक आम अनुभव को बढ़िया लघुकथा के माध्यम से साझा करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी। राहुल और चिड़िया, घर और ऑंगन, दाना -पानी और दिनचर्या  और फिर यकायक रमा के जीवन में अकेलेपन और सूनेपन के मर्म का तुलनात्मक चिंतन और तदनुसार संदेश बहुत बढ़िया है। थोड़ा और समय देकर रचना का बेहतर स्वरुप तैयार किया जा सकता है मेरे विचार से।

धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी, अवश्य प्रयास करूंगा।

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