For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-102

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 102वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब फ़ानी बदायूनी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"उन के कानों तक न पहुँचा और फ़साना बन गया"

2122     2122     2122     212

फाइलातुन     फाइलातुन      फाइलातुन      फाइलुन       

(बह्र: बह्र-ए-रमल मुसम्मन महजूफ )

रदीफ़ :-बन गया 
काफिया :- ( फसाना, बसेरा, निशाना, सहरा, लैला , आदि)

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 दिसंबर शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 29 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13293

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

....आदरणीय अमित कुमार जी ...आपका हार्दिक धन्यवाद...

जनाब गंगा धर शर्मा 'हिंदुस्तान' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'इश्क़ मैंने वो किया हर एक की जो चाह हो'

इस मिसरे में  दो जगह ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें--'एक की'---'चाह हो' 

'छीन लेना एक के सारे हकूकों को महज'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें,और 'हकूकों' ग़लत शब्द है,'हक़' शब्द का बहुवचन है "हक़ूक़"

'आग क्यों ना जा लगी उस बेरहम खत को बता'

गिरह के मिसरे में तक़ाबुल-ए-रदीफ़ दोष है ।

बाक़ी शुभ शुभ ।

आदरणीय समर कबीर जी , प्रणाम !

आपकी जानिब से मिलने वाला  हर मसविरा  खुद को आँकने का एक नायाब जरिया तो है ही उससे भी ज्यादा अपने आप में एक सनद से कम नहीं है.....ऐब-ए-तनाफुर के गजल में रह जाने का एक बहुत बड़ा कारण मूलतः हिन्दी (विशेषतः संस्कृतनिष्ठ हिन्दी) कवि होना है....जिसे गजल ने ऐब ए- तनाफुर कहा है वो हिन्दी काव्य में एक अलंकार यानि विशिष्ट गुण के रूप में जाना जाता है...मेरी दो पंक्तियाँ देखें .. ...

"चक्र करमूल कंकण का कर मूल नष्ट दुष्टों का ।

मिटा देगा कलंकित पंक पृष्ठ इतिहास पृष्ठों का॥"

"हकूकों" शब्द का प्रयोग भी उसी पृष्ठभूमि के दृष्टिगत किया गया था...

तकाबुल ए रदीफ़ दोष कहीं कहीं पर स्वीकार्य होना कहा गया है...तथापि दोष तो है ही.... 

 

संकलन के समय इसमें उचित सुधार की पूरी कोशिश रहेगी....

...

रचना की इतनी विशद समीक्षा के लिए आपका  पुनः हार्दिक धन्यवाद...

// 

चक्र करमूल कंकण का कर मूल नष्ट दुष्टों का ।

मिटा देगा कलंकित पंक पृष्ठ इतिहास पृष्ठों का॥//

आपकी इन पंक्तियों में तनाफ़ुर कहाँ है जनाब?

//चक्र करमूल कंकण का कर मूल नष्ट दुष्टों का ।

मिटा देगा कलंकित पंक पृष्ठ इतिहास पृष्ठों का॥//

आपकी इन पंक्तियों में तनाफ़ुर कहाँ है जनाब?

आदरणीय समर कबीर जी यदि मैं गलत नहीं हूँ तो //का कर // के मध्य यह दोष कहा जा सकता है......

इसी प्रकार महाकवि बिहारी के प्रसिद्ध दोहे 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय'  

// 

यदि मैं गलत नहीं हूँ तो //का कर // के मध्य यह दोष कहा जा सकता है......

इसी प्रकार महाकवि बिहारी के प्रसिद्ध दोहे 'कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय'//

'का कर' में तनाफ़ुर इसलिए नहीं है कि पहले 'का' में आ की मात्रा है,और दूसरी बात दोहे में ये ऐब माना ही नहीं जाता,ये सिर्फ़ ग़ज़ल विधा में ही होता है । 

//'का कर' में तनाफ़ुर इसलिए नहीं है कि पहले 'का' में आ की मात्रा है// 

आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम !

'का कर' मे मात्रा की भिन्नता से (तनाफुर) दोष का परिहार हो गया, यानि दोष नहीं रहा....कुछ यही स्थिति क्या गज़ल के इस मिसरे में भी नहीं है... 

...//'इश्क़ मैंने वो किया हर एक की जो चाह हो'

इस मिसरे में  दो जगह ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें--'एक की'---'चाह हो' ///

'एक की ' एवं 'चाह हो' दोनों ही जगह मात्रा में भिन्नता है ....

'  'इश्क़ मैंने वो किया हर एक की जो चाह हो'

'एक की'--इसमें ऐब है क्योंकि पहले 'क' के बाद दूसरे 'क' में पहले अक्षर है बाद में मात्रा,अगर ये शब्द 'की कर' होता तब ऐब नहीं होता,इसी तरह 'चाह हो'की स्थिति भी है ।

आपकी पंक्ति में भी 'का कर' में इसलिए ऐब नहीं है ।

उम्मीद है आप समझ गए होंगे ।

आदरणीय समर कबीर जी, ऐब ए तनाफुर से जुड़ी मेरी शंका के इतने सरल स्पष्टीकरण के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद...

कामयाबी चूमती 'हिंदोस्तां'  के भी कदम।

उच्च कुल में जन्म होना ही अड़ंगा बन गया| ये खूब कही साहब आपने जनाब गंगाधर शर्मा जी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई l

आदरणीय अनीस शेख जी.....आपका .....हार्दिक धन्यवाद....

गंगाधर जी बहुत अच्छा प्रयास। सिक्के के दूसरे पहलू को उभारने का उम्दा प्रयास।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
9 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
14 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service