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दिखलाते हैं जो सदा, व्हाट्सएप पर ओज।
गुडमार्निंग गुडनाइट जो, करें नियम से रोज।।
करें नियम से रोज, किंतु जब सम्मुख मिलते।
तब फिर इनके होंठ, नहीं रत्तीभर हिलते।।
आगे बढ़कर हाथ, नहीं यह कभी मिलाते।
वटसिपिया व्यवहार, नैट पर ये दिखलाते।।
(मौलिक व अप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**

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Comment by Hariom Shrivastava on April 12, 2019 at 9:05pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सारना जी।

Comment by Sushil Sarna on April 4, 2019 at 8:08pm

बिलकुल सही आदरणीय ये एक यथार्थ है जो व्यर्थ का एक संवाद है। इस सार्थक प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई।

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