(२२१ २१२१ १२२१ २१२ )
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मिलती अवाम को ख़ुशी की जलपरी नहीं 
रुख़्सत अगर वतन से हुई भुखमरी नहीं 
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उल्फ़त जनाब होती नहीं है रियाज़ियात 
चलती है इश्क़ में कोई दानिशवरी * नहीं
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 उम्र-ए-ख़िज़ाँ में आप जतन कुछ भी कीजिये 
 नक्श-ओ-निग़ार-ए-रुख़ की कोई इस्तरी नहीं 
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 बरसों से काटती है ग़रीबी में रोज़-ओ-शब 
 कैसी अवाम है कहे खोटी खरी नहीं 
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 घर में न खिड़कियों की ज़रुरत बची है अब 
 तामीर-ए-नौ में अब कहीं बारहदरी नहीं 
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 दिल पर कभी न मैल कोई जमने दीजिये 
 जो साफ़ दिल करे वो बनी फ़िटकरी नहीं 
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 अब तक किया जो काम हिसाब उसका दीजिये 
 जनता से कीजिये कोई बाज़ीगरी नहीं 
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 लक़ब-ए-सुख़न की आप उमीदें न पालिये 
 सरकार की अगर भरी है हाज़री नहीं 
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 आपस के मनमुटाव का हल कैसे हो 'तुरंत '
 जब तक सुलह के वास्ते बिछती दरी नहीं 
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 गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
 २६/०३/२०१९
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Samar kabeer साहेब | आदाब |
बे'पनाह, मुहब्बतों, नवाज़िशों का दिल से बे'हद शुक्रिया ! शाद-औ-आबाद रहें
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी,आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय Hariom Shrivastava जी ,आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |
वाह,वाहह,बहुत सुंदर ग़ज़ल आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत जी।
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