For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चंदा से गपियाने के दिन

कहाँ कठिन थे

राजनीतिको छोड़ो     

कैसे अच्छे दिन थे।

 

टीलों पर,

रथ ले अपना 

भाग निकलते थे,

अब विमान में डर है 

नौ ग्यारह फिर आये; 

घसीटते जीवन को,

बोर हुई यात्रायें,

जेटलेग के मारे 

नींद रुष्ट हो जाये;

 

इंटरनेट बिना भी 

न थी झंझट कहीं भी 

सभी खुले में होते 

जश्न,  कहाँ केबिन थे।

 

वह भी युग था, खाने के,

बहुत सलीके थे  

पंगत बैठी,  भोजन,

करते दरी बिछाकर; 

अब दे ठोकर क्यू में,  

शरम कहाँ अपनो की,

शोर-गुल दिखावे का  

करते जला जला कर;

 

बुफे कहो  फैशन में,    

गिद्धभोजन भले ही   

याद रहा  घीसू का,

ढ़ाबा, चले टिफिन थे।

 

द्द्दू की मोटर के  पीछे

भागा करते

चाचा ताऊ फटकारें, 

सब के होँठ सिले; 

चना चबेना में खुश थे,

पर  कौर छीनते

जी चाहा शर्त बहस,

फिर रो कर गले मिले 

 

मन किया,  

सोये खाट, बिछाते, अंगना में

मोरी पर,

धो लेते, हाथ, कहाँ बेसिन थे।

 

( मौलिक और अप्रकाशित )

Views: 614

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harihar Jha on September 30, 2018 at 2:53pm

बबिता जी , बहुत बहुत धन्यवाद।

Comment by babitagupta on September 29, 2018 at 12:58pm

बेहतरीन रचना, गुजरे जमाने की और आधुनिक जीवन शैली की तुलना व कटाक्ष करती रचना,हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय हरिहर सरजी। 

Comment by Samar kabeer on September 26, 2018 at 2:48pm

मुझे भी यही एक कविता नज़र आ रही है आपकी ।

Comment by Harihar Jha on September 26, 2018 at 10:48am

आदरणीय समर  कबीर जी, नाम लिखने में पिछली बार भूल हुई क्षमा चाहता हूँ।

मुझे  'My Blog' में एक और केवल एक कविता दिख रही है।  क्या आपको इस कविता के अलावा मेरी अन्य

चार-पाँच कवितायें दिखती है? मुझे शंका है मेरे ही दो एकाउंट मिक्स-अप हो गये हैं।

मैंने प्रबंधन समिति को समस्या लिख दी है और उत्तर का इंतजार है।

Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2018 at 8:25pm

आद0हरिहर झा जी सादर अभिवादन। बढ़िया रचना है पर यह दुबारा पोस्ट हुई है। एक बात और आपने "आदरणीय समीर जी" लिखा है अपने प्रतिउत्तर में जबकि सहीह नाम "समर कबीर" है, देखियेगा।

Comment by Samar kabeer on September 25, 2018 at 12:41pm

इसका जवाब तो प्रबन्धन समिति ही देगी,आदरणीय ।

Comment by Harihar Jha on September 25, 2018 at 10:52am

आदरणीय समीर जी, नमस्कार। मुझे केवल एक बार ही दिख रही है। दो बार दिखने पर संपादन मंडल को एक हटा देने का पूरा अधिकार है।

एक बात मेरी समझ में नहीं आई कि फोरम के लिये कविता केवल ब्लोग (My Blog) पर लगानी है या फोरम के कमेंट में भी।

कुछ दिनो पहले मेरी कुछ गलती से सदस्यता समाप्त हो गई थी फिर उसी दिन पुन: मिल भी गई। पुरानी चार पाँच कविता जो अब गायब हो चुकी थी पुन: My Blog में लोड की पर एक दो दिन में वे सब गायब हो गई। मुझे लगा पुन: लोड करना शायद संपादन मंडल को अच्छा नहीं लगा। 

जो भी स्थिति  हो कृपया अवगत करायें।

Comment by Samar kabeer on September 24, 2018 at 11:48am

जनाब हरिहर झा साहिब आदाब,ये रचना आपने दोबारा पोस्ट कर दी है,देखियेगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
3 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service