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मापनी -  2122 2122 2122 212

 

जिन्दगी है कीमती यूँ ही लुटाने से रहे  

हर किसी के गीत हम तो गुनगुनाने से रहे

 

पैर अंगद से जमे हैं सत्य की दहलीज पर

हो रही मुश्किल बहुत लेकिन हटाने से रहे

 

अर्जियाँ सब गुम गईं या फाइलों में कैद हैं ?

पूछता वह रोज है, साहब बताने से रहे

 

रोज नतमस्तक हुए हैं प्रेम के आगे, मगर

नफरतों के सामने तो सर झुकाने से रहे

 

शेर सुनना चाहते हो तो बजाओ तालियाँ

आपकी चाहत न हो तो हम सुनाने से रहे

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on September 1, 2018 at 9:03pm

आदरणीय Mohammed Arif जी आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 1, 2018 at 6:52pm

आ. भाई बसंत जी, खूबसूरत गजल हुयी है । हार्दिक बधाई स्वीकारें ।

Comment by Samar kabeer on September 1, 2018 at 12:23pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

हर किसी के गीत तो हम गुनगुनाने से रहे'

इस मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर देखें "गीत तो",इस मिसरे को यूँ कर लें तो ऐब निकल जायेगा:-

'हर किसी के गीत हम तो गुनगुनाने से रहे'

Comment by Samar kabeer on September 1, 2018 at 12:14pm

जनाब नरेन्द्र सिंह चौहान साहिब आदाब, आपसे पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ कि इस तरह की टिप्पणी ओबीओ मंच की परिपाटी नहीं है,ये सोशल मीडिया पर ही चलती होगी,लेकिन ऐसा लगता है आप समझना ही नहीं चाहते,और जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं,भाई ये सीखने सिखाने का पटल है, यहाँ पहले रचनाकार को पूरे सम्मान से संबोधित किया जाता है,फिर उसकी रचना की तारीफ़ या आलोचना शिष्टता के साथ की जाती है,उदाहरण स्वरूप इसी ग़ज़ल पर आई हुई टिप्पणियां देखें ,उम्मीद है मेरी बात को संज्ञान में लेंगे ।

Comment by narendrasinh chauhan on September 1, 2018 at 11:26am
बहोत खुब
Comment by Shyam Narain Verma on September 1, 2018 at 10:21am

आदरणीय बसंत कुमार जी प्रणाम , बहुत सुन्दर रचना के लिये आपको बधाई सादर.

Comment by Mohammed Arif on August 31, 2018 at 10:51pm

आदरणीय बसंत कुमार जी आदाब,

                         बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

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