For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल(आइये,आज का चलन.....)

212 212 212 212
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
आइये,आज का जो चलन,देखिये,
सच हुआ झूठ का जो कथन,देखिये।1

मैं सही,वह गलत,घोषणा हो रही,
जिंस बन बिक रहे वे,रटन देखिये।2

देख लें सूट-बूटी वदन आज कल
फट गयी जेब चमके बटन देखिये।3

बेतरह ढूँढ़ते आपकी गलतियाँ
ढूँढ़ते आप, फटता गगन देखिये।4

नेमतें खुद गिनाते , हुए मौन कब?
लग रहा, बढ़ गया है वजन, देखिये।5

चाँद पर थूकना है मुनासिब कहीं?
दाग लगता नहीं क्या? फलन देखिये।6

बाअदब कह रहे बात वे हमनवा
जज हुए हम यहाँ, चोर बन देखिये।7

चेहरे चाक सब अनगिनत घाव हैं
बोल रहे तन नहीं,आप मन देखिये।8

सेठ बन ऐंठते आजकल राहजन
कल गया बीत कल,आज धन देखिये।9
@
@'मौलिक व अप्रकाशित'

Views: 697

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on May 18, 2017 at 7:31pm
आदरणीय लक्ष्मण भाई,दिल से आभारी हूँ।
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 18, 2017 at 11:20am

आ. भाई मनन जी,बढ़िया ग़ज़ल है, हार्दिक बधाई I

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 10:01am
आपका आभार आदरणीय महेंद्र जी।
Comment by Mahendra Kumar on May 17, 2017 at 9:30am

बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय मनन जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 7:46am

आदरणीय गिरिराज भाई, आभार व नमन। तुरत परिमार्जन करता हूँ ,सादर। 

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 7:45am

आदरणीय विजय निकोड़ जी, शुक्रिया। 

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 7:44am

आदरणीय सतविंदर जी, आपका शुक्रिया। 

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 7:43am

आदरणीय बृज जी, आपका आभार। 

Comment by Manan Kumar singh on May 17, 2017 at 7:42am

आदरणीय समर साहिब, आभार व नमन। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 16, 2017 at 9:22pm

आदरनीय मन भाई , गज़ल अच्छी हुई है .. बधाइयाँ स्वीकार करें ...

इन् मिसरों की तक्तीअ कर के देखियेगा ... बेबह्र लग रहे हैं

सच हुआ है झूठ का कथन,देखिये ---

बिकते जिंस बन वे,रटन देखिये।

लग रहा, बढ़ गया वजन, देखिये।

चेहरे चाक हुए अनगिनत घाव हैं

बोल रहे तन नहीं,आप मन देखिये

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service