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हम मिथिला केर वासी छी
हम मिथिला केर वासी छी
अछि गौरव हमरा भाषा पर
कि हम मैथिली भाषी छी,
हम मिथिला केर वासी छी,

एहि पवित्र धरती पर लेलनि
जग-जननी सीता अवतार,
लोक-कंठ सं गूँजी रहल अछि
कवि विद्यापति के उदगार

पूजनीय छथि मिथिला वासी
एहि बातक विश्वासी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

बाजव हमर ततेक मधुर अछि
सुनिते सब जन होथि प्रसन्न
उपजशील धरती एहि ठामक
उपजै अछि सब तरहक अन्न

माँछ, मखान, पान के प्रेमी
रस सं भरल विलासी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

बांसक बनल वस्तु सब देखू
सींक, चंगेरी, सुपती, मौनी
कोकटी धोती, तन पर मिरजई
पाग माथ पर काँधे तौनी,

कला, साहित्य, संगीत, नीति के
हम ही सब प्रकाशी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

एकरा पगतल के पखारि के
गंगा माता होथि प्रवाहित
आर अनेक नदी नाला सब
एहि धरती पर भेल समाहित

वैभव सं परिपूर्ण करै हित
प्रत्यनशील प्रयासी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

एतय बहुत विद्वान भेला हे
कवि, गायक ओ नाटककार
सब तरहें संपन्न भेल अछि
आर बढ़त नित एकर निखार

सदिखन एकर नाम हो रोशन
सदा काल अभिलाषी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

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Replies to This Discussion

मनोज भईया बहुत ही सुंदर मैथिलि कविता लिखे है , मैं ४ साल मैथिलि भाषी क्षेत्र मे नौकरी किया हूँ ,इस दौरान मुझे मैथिलि का oneway ज्ञान हुआ है , यानी समझ लेता हूँ पर बोल नहीं पाता, आप से निवेदन हैं कि आप मैथिलि भाषी सदस्यों को OBO परिवार से जोड़े और OBO के मंच से मैथिलि के समृद्ध साहित्य को दुनिया के सामने ले आवे, अहा के बहुत बहुत धन्यवाद छी ,
मनोज जी , मोन आनंदित कय देलक, आहाक ई रचना | बहुत - बहुत धन्यवाद और शुभ कामना | - अभय........
sir ji khubsurat rachana

अहाँक ई रचना कहबाक नै, मोन टा मुग्ध कए देलक..

निम्नांकित ई दुइ बंद विशेष रुचगर प्रतीत भेल -

//बाजव हमर ततेक मधुर अछि
सुनिते सब जन होथि प्रसन्न
उपजशील धरती एहि ठामक
उपजै अछि सब तरहक अन्न

माँछ, मखान, पान के प्रेमी
रस सं भरल विलासी छी,
हम मिथिला केर वासी छी

बांसक बनल वस्तु सब देखू
सींक, चंगेरी, सुपती, मौनी
कोकटी धोती, तन पर मिरजई
पाग माथ पर काँधे तौनी,

कला, साहित्य, संगीत, नीति के
हम ही सब प्रकाशी छी,
हम मिथिला केर वासी छी//

 

भाईजी, एह उत्कृष्ट रचना पर हम्मर दृष्टि विलंब सँ पड़ि रहल अछि  तकरा लेल हम अहाँ सँ क्षमा-याचना कर रहल छी.

पुनर्पुनः बधाई..

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