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आदरणीय मित्रों !
"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२ में आप सभी का हार्दिक स्वागत है ! इस प्रतियोगिता से सम्बंधित आज के इस चित्र में आधुनिक महानगर के मध्य यह मनभावन प्राकृतिक दृश्य दिखाई दे रहा है जिसमें प्रदर्शित किये गए पक्षियों में खासतौर से मयूर का सौन्दर्य उल्लेखनीय लगता है जिसकी यहाँ पर उपस्थिति मात्र से ही इस स्थान की ख़ूबसूरती कई गुना बढ़ गयी है और तो और यह जब नृत्य करता है तो इसके नृत्य की अदभुत छटा देखते ही बनती है | काश! हम भी अपने-अपने स्थान को भी इसी तरह हरा-भरा बना पाते तो ऐसे विहंगम दृश्य हर जगह देखने को मिलते और हमारी यह धरती निश्चय ही स्वर्ग बन जाती .........तब हमारे सामने ना तो पानी की कमी की कोई भी समस्या होती और न ही इन पक्षियों के लिए उपयुक्त निवास स्थान की कोई कमी ....... हम साहित्यकारों के लिए मयूर या मोर का स्थान तो और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है  क्योंकि  अधिकतर कवियों नें श्रृंगार रस की कविताओं में अक्सर इसका उल्लेख किया है |
आइये तो उठा लें अपनी-अपनी कलम .........और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ........क्योंकि........अब तो....मन अधीर हो रहा विहंग की तरह ........:) 

नोट :-

(1) १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |

(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग  रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करे | 


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

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Replies to This Discussion

Ganesh ji, bahut bahut dhanyawaad. 
बढ़िया हाइकू बधाई |
बहुत खूबसूरत हाइकु हैं। बहुत बहुत बधाई
khubsurat lajabab manmohak

 

// देखो हरा भरा ऐ उपवन,

जहां खड़े पक्षी राजा ! 

शायद करे विचार मन में,

बरखा रानी अब तू आजा ! 

समीप खडा बगुला अति सुन्दर,

अपनी ध्यान मग्न में खोये !

खुद को कटता देख वृक्ष भी,

अपनी हालत पे रोये !

उपवन मध्य चबूतरे देखो,

जिससे वन सघनता खोये ! 

पीछे दिखे कंक्रीट इमारत,

वन सुन्दर अंत  की मुख्य ओ कारण ! 

मानव इसे अपना रहा है ,

प्रकृति को दुद्कार रहा है !

भटके जन को करे जो वास्तव,

"ओबिओ" के अम्बरीश श्रीवास्तव ! ........................

 

वन्दना जी,

*****धन्यवाद****** 

 

संजय भाई ! बहुत खूबसूरत रचना रची आपने ! बहुत-बहुत बधाई मित्रवर ..........मैंने भी आपकी रचना की शीतल धारा के प्रवाह के साथ चलने का एक प्रयास किया है ! संभवतः आपको पसंद आये !.........:))

//देखो हरा भरा है उपवन,

जहां खड़े ये पक्षी राजा ! 

शायद यही विचारें मन में,

बरखा रानी अब तू आजा ! //


//दूर हंस दीखै  अति सुन्दर,

ध्यान मग्न अपने में खोया !

खुद को कटता देख वृक्ष भी,

अपनी हालत पे था रोया !//


//उपवन मध्य बना पक्का है ,

जिससे गहन सघनता खोये ! 

कंकरीट पीछे जो दिखती ,

देख उसे यह उपवन रोये  //


//मानव  कंकरीट अपनाता  ,

दूर प्रकृति से क्योंकर जाता   !

भटके जन अब तो कुछ  सोंचे ,

ओ बी ओ से जोड़ें नाता ! .......

 

जय ओ बी ओ  !!!!..........

 

// मुझे पसंद ही नहीं , मैंने इसे अपने दिल में उतार लिया है !   ह्रदय की गहराईयों से आपका स्वागत*******
वाह संजय जी वाह...क्या बात क्या बात...बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने...

 

*****************प्रीतम जी आपका बहुत-बहुत धन्यवाद,********************

संजय भाई - आनंद आ गया आपकी यह रचना पढ़कर ! बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है आपने चित्र का !

 

बहुत धन्यवाद भाई** जी, धन्यवाद ,,,,,,,,,,,, 

"मैंने आप को पहले ही एक बार बता दिया था की मै कभी एक दो लाइन की भी  रचना कभी लिखी नहीं है ! ऐ तो "ओ बी ओ" की कृपा और आप सब का प्रोत्साहान है ! जो कुछ लिखने को मजबूर हो जाता हूँ ! मेरी एक रचना को अम्बरीश भाई ने सही लाइन और आकार दे दिए,  जिसकी वजह से मेरी उस रचना का रूप ही बदल गया ! जिसको देखने के बाद मै मन ही मन बहुत हंसी आई !

******मेरा आप सब लोग दिल से आभार स्वीकार करे------------**************  

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