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उत्सव –( लघुकथा ) -

उत्सव –( लघुकथा ) -

"नाना जी, इस बार दीवाली पर पूरे मकान को बिजली की लडियों से ढक दैंगे, सारा घर जगमग करेगा"!

"नहीं छुट्टू, इस बार दीवाली पर यह सम्भव नहीं होगा"!

"किसलिये नाना जी"!

"छुट्टू, तेरी नानी,तेरे पापा और तेरी मॉ की बरसी होना बाकी है,उसके बाद ही हम कोई उत्सव मना सकते हैं"!

"यह तो और भी अच्छा है, एक साथ ही दौनों काम कर लेते हैं, दीवाली पर ही बरसी मना लेते हैं"!

"छुट्टू, बरसी एक साल पूर्ण होने पर पंडित जी द्वारा दी गयी तिथि पर  ही होती है"!

"नाना जी, उस वायुयान दुर्घटना को ग्यारह महीने हो गये,पिछले साल दिवाली की भाई दूज वाले दिन नानी,पापा और मम्मी की मृत्यु हुई थी , लगभग एक साल हो गया ना"!

"छुट्टू, यह सब इतना आसन नहीं है,समाजवाले क्या सोचेंगे"!

"नाना जी, समाजवालों ने एक दिन भी आपको आकर पूछा कि आप कैसे हो,किस तरह जी रहे हो,क्या आपका दुख किसी ने बांटा!नाना जी यह हमारी ज़िंदगी है, इसे हमें कैसे जीना है ,इसका फ़ैसला हम करेंगे, मुझसे आपका दुख नहीं देखा जाता"!

दस साल के छुटू के मुंह से यह सब सुन कर नाना जी की आंखें भर आईं!

 मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on October 30, 2015 at 2:26pm

हार्दिक आभार आदरणीय बबिता जी!

Comment by babita choubey shakti on October 30, 2015 at 11:51am
आ वीर जी सामाजिक कुरीतियों और परम्पराओँ को दिखाती और नन्हे बाल मन के प्रश्नो को दिखाती सूंदर रचना बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on October 30, 2015 at 11:43am

हार्दिक आभार आदरणीय राहिला जी!

Comment by TEJ VEER SINGH on October 30, 2015 at 11:42am

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी!आपकी हौसला अफ़ज़ाई के लिये शुक्रिया!

Comment by Rahila on October 29, 2015 at 4:37pm
बहुत मार्मिक रचना हुई आदरणीय तेज वीर सिंह जी । पढ़ कर मन भर आया । बहुत बधाई इस उम्दा लेखन के लिये ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 29, 2015 at 3:47pm
बच्चों के मुख से जब कभी परिपक्व स विचार व्यक्त हो जाते हैं तो हम न केवल स्तब्ध रह जाते हैं, बल्कि हमारी आँखें भी खुल जाती हैं। एक साथ कई समाज सुधारक संदेश देती रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीय Tej Veer Singh जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 29, 2015 at 3:13pm

हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी!आपने अपना  अमूल्य समय दिया,लघुकथा की सराहना की!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 29, 2015 at 3:03pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत ही मार्मिक लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति को पढ़कर दिल भर आया. 

बधाई 

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