For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा ) –

इंसानी फ़ितरत – ( लघुकथा )  –

"हे पवन देव ,कृपया मेरी  सहायता कीजिये"!आम के वॄक्ष ने कराहते हुए कहा

“क्या हुआ  बन्धु, कोई कष्ट है क्या"!

"क्या आप नहीं देख रहे, यह उदंड मानव झुंड, पत्थर मार मार कर मुझे घायल कर रहा हैं"!

"तो इसमें मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं"!

"आप अपने वेग से मुझे झकझोर कर मेरे फ़लों को नीचे गिरा दीजिये ताकि यह  संतुष्ट होकर,  पत्थर प्रहार बंद कर दें"!

"तुम बहुत भोले हो मित्र, ऐसा कुछ भी नहीं होगा,ये इंसान  हैं"!

"आपके इस कथन का आशय क्या है,स्पष्ट रूप से बताइये "!

"देखो मित्र,तुम्हारे पास अन्य जो भी प्राणी जैसे कीडे,मकोडे, पशु, पक्षी आदि आते हैं तो वे तुम्हारे  फ़ल, फ़ूल, पत्ते इत्यादि उतना ही लेते हैं जितनी उन्हें भूख या ज़रूरत  होती है"!

"हॉ, यह तो सत्य है"!

"मगर यह जो इंसान है,यह सदैव पेट से ज्यादा घर भरने की लालसा रखता है, भले ही वह वस्तु घर में पडे पडे नष्ट हो जाय"!

"पर ऐसा क्यों करता है इंसान"!

"यही इंसानी  फ़ितरत है"!

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 538

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on September 26, 2015 at 12:12pm

हार्दिक आभार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी!

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 26, 2015 at 10:17am
अच्छी लघुकथा के लिए दाद कुबूल करें आदरणीय तेज वीर जी
Comment by TEJ VEER SINGH on September 24, 2015 at 7:42pm

हार्दिक आभार आदरणीय कान्ता जी,कृष्ण मिश्रा जी!आपने मेरी लघुकथा को समय दिया ,सराहना की, अच्छी विवेचना की!पुनः बधाई!

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 24, 2015 at 3:18pm
सार्थक लघुकथा.हार्दिक बधाई आ.तेजवीर जी।
Comment by kanta roy on September 24, 2015 at 1:04pm
वाह !!! इंसानी फितरत जैसे जन्मों का भूख ,जितना खाये उतना उसका भूख बढता जाये । बहुत सफल रचनाकर्म हुआ है आदरणीय तेजवीर जी । बधाई
Comment by TEJ VEER SINGH on September 24, 2015 at 12:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, श्री मिथिलेश वामनकर जी, आप लोगों ने मेरी लघुकथा को समय दिया, सराहना की, अपने महत्व पूर्ण विचार व्यक्त किये!पुनः आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 24, 2015 at 12:13pm

आदरणीय तेजवीर सिंह जी बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. अपने शीर्षक को सार्थक करती इस सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:47pm

इंसानी फितरत कथा में उभर कर सामने आयी है , साधुवाद .

Comment by TEJ VEER SINGH on September 23, 2015 at 8:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी, लघुकथा को समय दिया,सराहा, सार्थक टिप्पणी की!पुनः आभार!

Comment by pratibha pande on September 23, 2015 at 5:50pm

संचय करने की प्रवृति ही इंसानी दुखों का कारण है ,गहरे मर्म वाली इस प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आदरणीय तेज़ वीर सिंह जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service