For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बदरिया कहाँ गई // कान्ता राॅय

सावन की बुनझीसी सखी है तन में लगाए आग .......बदरिया कहाँ गई

गोर बदन कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ......बदरिया कहाँ गई

सावन भादों रात अंहारी थर - थर काँपय शरीर ...... बदरिया कहाँ गई

दादूर मोर पपीहा बोले कहाँ गये  रघुनाथ.....बदरिया कहाँ गई

अमुआँ की डारी झूले नर- नारी मैं दहक अंगार ....बदरिया कहाँ गई

उमड़ उमड़े नदी जल पोखर तन में रह गई प्यास...... बदरिया कहाँ गई

सब सखी पहिरय हरीयर चुड़ी मोरा कंगना उदास ...... बदरिया कहाँ गई

सावन पिया आवन कह गये नैहर कैसे जाऊँ ..... बदरिया कहाँ गई

सुध बिसरे मेरी प्रीत की प्रीतम सौतन घर किये वास ......... बदरिया कहाँ गई

तरूण बयस मोरा पिया तेजल भीजल देह लगे आग ...... बदरिया कहाँ गई

जग हरीयाली सगरे छाई मोरा मन सुखमास ....... बदरिया कहाँ गई

बेली चमेली करे अठखेली बरखा झींसी फुहार ......बदरिया कहाँ गई

पिया जब आये आस पुराये सावन हुआ मधुमास .....बदरिया आ ही गई

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 670

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on August 11, 2015 at 6:39pm
हा हा हा हा .....इतनी सुंदर आत्मीयता भरे प्रोत्साहन पाकर मै मुग्ध हो उठी हूँ आदरणीया प्रतिभा जी । सादर नमन आपको
Comment by pratibha pande on August 11, 2015 at 2:54pm
बहुत भीनी भीनी सी सोंधी गंध लिए हुए है ये रचना , आपके रचनाधर्म के तरकश का एक और दिल पे लगने वाला तीर बधाई आपको आ०कांता जी
Comment by kanta roy on August 9, 2015 at 9:45pm
आदरणीय जवाहरलाल जी , हम सबको इस तरह के लेखन करने की बेहद जरूरत है । नई तकनीकों को अपनाते हुए हमें अपने पारम्परिक लेखन को भी नव सृजन से तरो ताजा करते रहना चाहिए । सादर नमन रचना पर प्रतिक्रिया हेतु ।
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 12:12pm

हरी हरी सर से सरके चुनरिया बदरिया आयो हे हरी 

पिया बिन सूनी आज सेजरिया बदरिया आयो हे हरी

बिहार में प्रचलित कजरी के बोल मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ आदरणीया कांता रॉय जी 

वैसे आपकी रचना सावन के मौसम के अनुरूप है और सावन में गीतों, झूलों, कजरियों का माहौल कभी रहता था ...आज यह सब लुप्तप्राय सा हो गया है ...सादर!

Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:34am
आपका बचपन याद आना इस रचना पर मेरा रचना कर्म सफल हुआ आदरणीया डा. आशुतोष कुमार जी । इस तरह के लोकगीत हमारी माँ गाया करती थी बचपन में । ये गीत हमारे संस्कार और संस्कृति का हिस्सा रही है सदा से । इसकी मिठास दशकों पूर्व जितनी थी ये अाज भी उतनी ही कायम है बिलकुल मिश्री के समान । आभार आपको तहे दिल से ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:30am
रचना पर मुझे प्रोत्साहित करने के लिए दिल से आपको आभार आदरणीय कृष्णा मिश्रा जान गोरखपूरी जी ।
Comment by kanta roy on August 8, 2015 at 7:28am
मैने लोकगीत के आधार पर ही इस रचना पर कोशिश की है । मेरी इस कोशिश की सराहना के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीय मिथिलेश जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 7, 2015 at 1:14pm

आदरणीया इस तरह की रचना पहली बार इस मंच पर पढ़ रहा हूँ ..इस रचना को पढ़कर बचपन के दिन याद आ गए जब इस तरह के मिलते जुलती रचनाएँ सुनने को मिल जाया करती थी //ढेर सारी बधाई के साथ सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on August 6, 2015 at 9:11pm

वाह! आ० आपकी रचनाकर्म के विविध रंग देखते ही बन रहे है! सावन की मस्ती में ओत-प्रोत इस लोगगीत पर तहेदिल से बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:01pm

आदरणीया कांता जी, बहुत ही सुन्दर रचना हुई है. लालित्य से परिपूर्ण इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. लोकगीतों की तर्ज़ पर इसे गुनगुनाते हुए आनंद आ गया. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
14 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service