पैरों में एक जोड़ी हवाई चप्पल,
और छोटी छोटी ख़्वाहिशों से चमकती आँखों के साथ
हाथों में स्टिक लिए
कुछ लड़कियां हॉकी खेलने जाती है
भागती है गेंद के पीछे
गेंद में छुपा बैठा है पेट भर खाने का सुख
पहाड़ के उस पार
जंगलों के बीचों बीच नंगे पाँव
एक वृद्ध आदिवासी दंपति
सखुआ के पत्तों को हटाकर
पौधों की जड़ें खोद
रात के खाने का इंतजाम करता है।
उसने कभी हॉकी का स्टिक नहीं देखा है
पर वह सपने देखता है
गेंद से निकलते गरम माड़ और भात का।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नीरज जी , बहुत खूब , बहुत बहुत बधाई आपको इस सुन्दर रचना पर ! सादर
आ॰ मिथिलेश वामनकर जी आपको कविता पसंद आई ... हार्दिक आभार आपका॥
आपको कविता में निहित संवेदना पसंद आई , आपका हार्दिक आभार आ॰ डॉ विजय शंकर जी ...
आदरणीय नीरज कविता की संवेदना से भरपूर जुड़ते हुए जी भर आया. इस सशक्त प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
आ॰ डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव साहब आपके आशीष और स्नेह के लिए आपका हार्दिक आभार .....
आ० नीरज भाई
आपकी कवितायेँ पढता रहता हूँ . आप अपनी कविता में जो संवेदना लाते हो उससे मन भर आता है . आप बहुत आगे तक जांए . सादर .
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