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भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

मिटाये से नहीं मिटती न जाने याद क्‍यों उसकी

बनी तस्‍वीर है प्‍यारी जिगर में आज भी जिसकी

न हो जब पास वो मेरे लगे ये जिन्‍दगी वैसे

सजी हो चॉंद की महफिल न हो पर चॉंदनी जैसे

बता यह बात दुनिया को नही मुझको हँसाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

बना कर नाँव कागज की चला मैं ढूढ़ने उसको

किया था प्‍यार बचपन से जवानी आने तक जिसको

न चलती नाँव कागज की हकीकत आज भूले हम

न लौटेगा कभी बचपन इसी का है मुझे अब गम

मगर अब ढूढ़ कर उसको मुझे अपना बनाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

करे दिल याद उसको जब न थमते अश्‍क क्‍यों मेरे

कहे दिल आज भी उसको न है कोई सिवा तेरे

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

कबूतर भी नहीं जिससे मुझे पाती पठाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 13, 2015 at 5:59pm

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

कबूतर भी नहीं जिससे मुझे पाती पठाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

बहुत ही खूबसूरत!

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 13, 2015 at 11:26am

आ0 भाई अखंड जी , सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Akhand Gahmari on January 12, 2015 at 10:43am

आदरणीया डाक्‍टब्‍र प्राची सिंह जी आपका स्‍नेह और आशीर्वाद मिला रचना आपको अच्‍छी लगी रचना सफल हुई, नमन आपको


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 11, 2015 at 5:11pm

प्रेम में विरह दंश की इस अभिव्यक्ति पर बधाई प्रेषित है आ० अखंड गहमरी जी 

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:52am

आदरणीय सोमेश कुमार  जी आपका स्‍नेह रचना को मिला नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:52am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आपका स्‍नेह रचना को मिला नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:51am

आदरणीय गणेश बागी जी आपका स्‍नेह और आशीर्वाद का फल है, रचना आपको अच्‍छी लगी रचना सफल हो गई, नमन आपको

Comment by Akhand Gahmari on January 11, 2015 at 11:42am

आदरणीय हरि प्रकाश दूबे जी आप की स्‍नेह मिला रचना सफल हुई नमन आपको

Comment by somesh kumar on January 10, 2015 at 9:47pm

न चलती नाँव कागज की हकीकत आज भूले हम

न लौटेगा कभी बचपन इसी का है मुझे अब गम

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

सम्पूर्ण रचना सुंदर भावनावों का कलेवर है और जो बात अपने दिल की लगी वो मुद्रित कर दी |इस रचना पर हार्दिक बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 10, 2015 at 9:37pm

सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय गहमरी जी, रचना अच्छी लगी बधाई स्वीकार करें.

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