For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आज फुर्सत मे जो बैठा तो ध्यान आया है
हमने क्या खो दिया है और क्या बनाया है

वार हर बार तो होते ही रहे पीछे से
जब किसी दोस्त ने हमको गले लगाया है

कोई आवाज नही राख कोई शोला भी
ज़िन्दगी तूने हमे खूब क्या जलाया है

कोई तो एब हमारा ही रहा होगा ही
हमने हरबार जो रूठों को फिर मनाया है

मौत भी खाक 'ऋषी' रोकेगी मेरा रस्ता
मुझको मॉं बाप के आशीष ने बनाया है

अनुराग सिंह "ऋषी"

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 584

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 30, 2014 at 5:02pm
विलम्ब हेतु माफी चाहुंगा आदरनीय गुरूजनों मै यथा सम्भव कोशिस करके त्रुटि रहित गज़ल पुन: पूर्ण करूंगा

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 25, 2014 at 12:26am

 ज़िन्दगी तूने हमे खूब क्या जलाया है,\ जब किसी दोस्त ने हमको गले लगाया है, \ मुझको मॉं बाप के आशीष ने बनाया है \ इन पंक्तियों में 2122-212-212- 1222 का वज्न है आपको यदि उचित लगी तो इसी वज्न में पूरी रचना बदल सकते है. भाव अच्छे है . सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 24, 2014 at 1:18pm

अनुराग जी

आपको भाव पर दाद मिली है शिल्प् पर  नहीं i आ० बागी जी का प्रश्न गौर करे  i  सादर i

Comment by harivallabh sharma on December 24, 2014 at 12:11am

सुन्दर भाव हैं आपके..आदरणीय 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 23, 2014 at 9:21pm

अच्छी भावाभिव्यक्ति है आदरणीय अनुराग जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 23, 2014 at 9:20pm

अनुराग जी, वजन क्या लिया है ?

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 23, 2014 at 8:37pm
आभार सोमेश सर आपका
Comment by somesh kumar on December 23, 2014 at 7:47pm

वार हर बार तो होते ही रहे पीछे से
जब किसी दोस्त ने हमको गले लगाया है

कोई तो एब हमारा ही रहा होगा ही
हमने हरबार जो रूठों को फिर मनाया है

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 23, 2014 at 6:54pm
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर
Comment by Hari Prakash Dubey on December 23, 2014 at 5:48pm

आज फुर्सत मे जो बैठा तो ध्यान आया है
हमने क्या खो दिया है और क्या बनाया है......सुन्दर प्रस्तुति अनुराग सिंह "ऋषी" जी, बधाई आपको !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
3 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Jun 5
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service