For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्व रक्षार्थ का भार भेजा है (तुकांत कविता )

रक्षा सूत्र में पिरोकर अपना प्यार भेजा है
भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है|

माना मन में तेरे राखी का सम्मान नहीं  
बड़े मान से हमने अपना दुलार भेजा है|

रिश्ता भाई बहन  का हैं एक अटूट बंधन
होता  जार जार जो सब जोरजार भेजा है|

ढुलक गया मोती जो मेरी नम आँखों से
 पिरोकर मोती  हमने उपहार भेजा है|

गिले शिकवे भूल सारे फिर एक बार
  सहेज कर यादें लिफ़ाफ़े में मधुर भेजा है|

राखी दो पैसे की हो  या हजारों की भैया  
चंद धागों में लिपटा प्यार बेशुमार भेजा है|

मतलब के हो गये  सारे ही रिश्तें नाते
हो मधुर रिश्तें सन्देश दें मधुकर भेजा है|

माना होता प्रगाढ़ बहुत खून का रिश्ता
स्नेह अपार निहित राखी का तार भेजा है|

क्रांति चेहरे की भैया हो ना फीकी कभी
हरने सारे गम माँ का प्यार विधर भेजा है|

.

सविता मिश्रा

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by savitamishra on August 12, 2014 at 11:25pm

विजय चाचाजी सादर आभार आपका आदरणीय ......._/\_

Comment by vijay nikore on August 12, 2014 at 12:41pm

//रक्षा सूत्र में पिरोकर अपना प्यार भेजा है 
भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है//

यह पंक्तियाँ भाई-बहन के पावन रिश्ते के दायित्व को पूर्ण परिभाषित कर रही हैं। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया सविता जी।

Comment by savitamishra on August 10, 2014 at 11:29pm

चंद धागों में पिरो निज प्यार भेजा है
अपनी रक्षा के लिए साभार भेजा है|

माना तेरे मन में राखी का सम्मान नहीं
बड़े मान से राखी में दुलार भेजा है|

भाई बहिन का नाता जैसे इक अटूट बंधन है
जार जार होता जाता पर जोरजार भेजा है|

ढुलक गया आंसूं का मोती मेरी नम आँखों से
गूंथ गूंथ ऐसे मोती का हार भेजा है|

सारे शिकवे गिले भूल सावन में हर बार
बंद लिफ़ाफ़े में यादों का भण्डार भेजा है|

मेरी राखी के धागों का मोल नहीं है भैया
प्यार छुपा कर धागों में बेशुमार भेजा है|

मतलब की दुनिया मतलब के सारे रिश्तें नाते
रखना रिश्तें मधुर यही मनुहार भेजा है|

माना होता अजब अनोखा यही खून का रिश्ता
राखी के तारों में निहित रिश्तों का प्यार भेजा है|

कभी ना फीकी हो मेरे भैया कान्ति तेरे चेहरे की
हरने को सारे गम तेरे माँ सा दुलार भेजा है|  सविता मिश्रा

Comment by savitamishra on August 10, 2014 at 10:34pm

रक्षा बंधन की आप सभी को बहुत बहुत बधाइंयां एवं शुभकामनायें............वैसे दिल कर रहा था शायद रक्षा बंधन पर यह सेलेक्ट करें पर अब इसे अपने पेज पर देख समझ नहीं आ रहा है कि इसे सेलेक्ट ना करने पर जो सही कर दूसरी इसी की भेजे थे वह रिजेक्ट ना हो यह सेलेक्ट की गयी ..सेलेक्ट ना होने के कारण हमें लगा कि हमने बिलकुल सही नहीं लिखा अतः आरसी चाचाजी हमने दुसरे के लिय मदद ली थी ....पर अब दूसरी रिजेक्ट देख दुःख और संसय दोनों हो रहा है ......वह गलत थी या य.....

Comment by savitamishra on August 10, 2014 at 9:31pm

आदरणीय विजय भैया और आदरणीय भंडारी भैया आप दोनों महानुभाव का तहेदिल से शुक्रिया .....आभार है हम

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2014 at 9:40am
बहुत सुन्दर आदरणीय सविता मिश्रा जी , बहुत बहुत बधाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 10, 2014 at 8:37am

बहुत सुन्दर भाव पूर्ण कविता , रक्षा बंधन के पर्व पर और बहुत अच्छी लगी आपकी कविता के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया सविता जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service