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साथ जीने की सज़ा

चाहतों ने गुलज़मीं पे चाँदनी जब छा दिया

आहटों ने बढ़ तराना प्यार का तब गा दिया |

 

हाथ क़ैदी की तरह सहमे हुए थे क़ैद में

क़ैदख़ाने में किसी ने दिल थमा बहका दिया |

 

पाँव में थीं बेड़ियाँ, बेदम नज़र, मंजिल न थी

हौसले ने वक़्त पे सिर से कफ़न फहरा दिया |

 

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

 

मातमी अंदाज़ में लोगों का जमघट था लगा

साथ जीने की सज़ा ने मौत को झुठला दिया |

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

--- संतलाल करुण

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Comment by Santlal Karun on June 28, 2014 at 6:24pm

आदरणीय जे.एल.सिंह जी,

ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए सहृदय आभार !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 28, 2014 at 12:50pm

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े

फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

वाह वाह क्या अंदाज है सर जी 

आपने तो पूरे गुलशन को हे बहका दिया...सादर!

Comment by Santlal Karun on June 26, 2014 at 8:39pm

आदरणीया डॉ. प्राची जी,

आप के प्रेरक उद्गार और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 25, 2014 at 4:13pm

बहुत गहरी भावनाओं को अभिव्यक्त किया है शेर दर शेर 

मन को कचोटते से हैं इन अशआरों के कहन...प्रस्तुत ग़ज़ल पर मेरी दिली शुभकामनाएं प्रस्तुत हैं ..स्वीकार कीजिये 

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 5:17pm

आदरणीय सुशील जी,

ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए तहे दिल से शुक्रिया !

Comment by Sushil Sarna on June 23, 2014 at 5:02pm

होंठ काँटों के हवाले खूँ से लथपथ थे पड़े
फूल की ख़ुशबू ने टाँके खींचकर महका दिया |

वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल .... हर शेर खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ है .... इस खूबसूरत पेशकश के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं आदरणीय

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:40pm

आदरणीय शशि मेहरा जी,

ग़ज़ल पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए हृदयपूर्वक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:38pm

आदरणीया कुंती जी,

ग़ज़ल प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:36pm

आदरणीया गीतिका जी,

सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on June 23, 2014 at 4:34pm

आदरणीया मंजरी मैडम,

आशा है आस्ट्रेलिया से वापस बनारस आ गई होंगी और सकुशल होंगी | हम कुशलपूर्वक हैं और सुलतानपुर में ही हैं | ग़ज़ल की सराहना के लिए हार्दिक आभार ! वेबसाइट का लिंक दे रहा हूँ --  http://bit.ly/1jkf2w4 

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