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वो गयी न ज़बीं से

वो गयी न ज़बीं से …

आबाद हैं तन्हाईयाँ ..तेरी यादों की महक से
वो गयी न ज़बीं से .मैंने देखा बहुत बहक के

कब तलक रोकें भला बेशर्मी बहते अश्कों की
छुप सके न तीरगी में अक्स उनकी महक के

सुर्ख आँखें कह रही हैं ....बेकरारी इंतज़ार की
लो आरिज़ों पे रुक गए ..छुपे दर्द यूँ पलक के

ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते
रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के

बस गया है नफ़स में ....अहसास वो आपका
देखा न एक बार भी ......आपने हमें पलट के

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 22, 2014 at 1:06pm

आदरणीय जितेन्द्र    जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on April 22, 2014 at 1:05pm

आदरणीय गिरिराज    जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on April 22, 2014 at 1:04pm

आदरणीय बैद्यनाथ   जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का  का हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on April 22, 2014 at 1:03pm

आदरणीय शिज्जु शकूर  जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का  का हार्दिक आभार 


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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 20, 2014 at 8:57pm

आदरणीय सुशील सर भावाभिव्यक्ति अच्छी है। किस विधा में है कृपया उल्लेख करें तो हमारे जैसे सीखने वालों के लिये आसानी होगी

Comment by Saarthi Baidyanath on April 20, 2014 at 11:19am

आदरणीय , बढ़िया रचना ..! बह्र या अरकान बता देते तो सुरमयी आनन्द भी आ जाता ! बहरहाल ..मुबारकबाद :)


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 19, 2014 at 1:50pm

आदरणीय सुशील भाई , अच्छी भाव पूर्ण रचना के लिये अपाको बधाइयाँ !! बह्र समझ नही पा रहा हूँ , अगर आपने गज़ल कही है तो तो बह्र का उल्लेख ज़रूर कीजियेगा !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 19, 2014 at 11:05am

ज़िंदा हैं हम अब तलक..... आप ही के वास्ते
रूह वरना जानती है ......सब रास्ते फलक के...............बहुत खुबसूरत, दिली बधाई आपको आदरणीय शुशील जी

Comment by Sushil Sarna on April 18, 2014 at 7:09pm

आदरणीय कुंती मुख़र्जी ग़ज़ल पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार 

Comment by coontee mukerji on April 18, 2014 at 1:09am

बहुत सुंदर रूमानियत से भरपूर गज़ल. हार्दिक बधाई.

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