For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढूँढ़ता है दिल मेरा

तेरी सूरत का नज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

बस धड़कने का सहारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

बेवफाई कि खिजां में खो गया था जो कभी ,

प्यार का मौसम दुबारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

जिनकी कातिल सी अदा पर मर मिटा था ये कभी ,

उन निगाहों का इशारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,

आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

भूलकर दुनिया के सारे  आशियाँ और मकाँ ,

तेरे आँचल में गुज़ारा ढूँढ़ता है दिल मेरा ।

मौलिक व अप्रकाशित

   नीरज 'प्रेम'

Views: 681

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Nishchal on January 8, 2014 at 12:51pm

आदरणीय अरुण भाई आपका मतलब है

रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,

इस पंक्ति को बोलने पर स्वर बाधित हो रहा है और शायद इसी को
तकाबुले रदीफ़ का दोष भी कहते हैं मै कोशिश करता हूँ इसे ठीक करने की
ग़ज़ल कक्षा का अध्ययन करूँ तो शायद और भी सारी कमियों को जान पाऊँ
और अब समझ भी पा रहा हूँ ग़ज़ल संगीत से किस तरह जुड़ी है और पूरी तरह
मुझे लगता है संगीत पर ही आधारित है जहाँ एक छोटा सा स्वर भी बाध्य नही होता
है इतना सबकुछ सिखाने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया बहुत बहुत आभार

Comment by Neeraj Nishchal on January 8, 2014 at 12:25pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत बहुत शुक्रिया करता हूँ आपका ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 6, 2014 at 3:34pm

विधान और शिल्प के हिसाब से आपकी अबतक की सबसे सार्थक प्रस्तुति को पढ़ रहा हूँ.  इस भावपूर्ण ग़ज़ल के हो जाने पर दिल से बधाई लीजिये भाईजी. 

आपने २१२२ २१२२ २१२२ २१२ के वज़्न में मिसरे बाँधे हैं. इसे बता भी दिया होता. इस बिना पर आखिरी शेर का पहल मिसरे को फिर से देखे जाने की ज़रूरत है.

भाई अरुन अनन्त ने भी एक इशारा किया है. हम इसी ढंग से सीख कर अपनी रचनाओं के कथ्यों को बेहतर प्रस्तुत करने लगते हैं.

शुभेच्छाएँ.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on January 4, 2014 at 7:49pm
भाई नीरज जी! सुन्दर गजल हुई है। बधाई।
Comment by अरुन 'अनन्त' on January 2, 2014 at 11:22am

नीरज प्रेम भाई बहुत ही सुन्दर भाव बेहतरीन प्रयास किया है आपने आपकी मेहनत रंग ला रही है.

रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,

आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा । ये शेर सबसे अधिक पसंद आया किन्तु इसमें तकाबुले रदीफ़ का दोष है. आप भी देख लें.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 2, 2014 at 7:17am

भाई , नीरज जी , इस शे र के लिये हार्दिक बधाइयाँ .

रहनुमाँ उस आसमाँ से मांगने को एक दुआ ,

आज फिर टूटा सितारा ढूँढ़ता है दिल मेरा .

Comment by Neeraj Nishchal on January 1, 2014 at 9:16pm

आदरणीय अखिलेश जी आपको भी नव वर्ष मुबारक हो और बहुत बहुत आभार ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 1, 2014 at 9:00pm

सारिका जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
यहाँ सभी बहुत ही उत्कृष्ट प्रतिभाशाली रचनाकार हैं
और सभी कि ही रचनाएं अद्भुत हैं

Comment by Neeraj Nishchal on January 1, 2014 at 8:56pm

आदरणीया मुखर्जी जी सहृदय आभार व्यक्त करता हूँ ।

Comment by Neeraj Nishchal on January 1, 2014 at 8:54pm

आदरणीय भण्डारी जी तहे दिल से और बड़े ही अहोभाव से आपका आभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service