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जीवन का क्या 

कब झड़े ज्यूँ सूखे

पेड़ के पत्ते

माँ का दुलार

कितना भी हो, लगे

ओस की बूँद

मन बावरा

कभी जो मान जाता

मन की बात

नदी डालती

भले ही मीठा जल

सागर खारा

.

(मौलिक-अप्रकाशित)

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 10, 2013 at 7:22pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी 

नदी डालती

भले ही मीठा जल

सागर खारा......................बहुत सुन्दर हायकू 

हायकू विधा मात्र तीन पंक्तियों में ५-७-५- का वर्ण निर्वहन करते शब्द न हो कर बहुत सघन भाव को एक शब्द चित्र में प्रस्तुत करते हैं...उस कसौटी पर बहुत सुन्दर भाव हैं सभी हायकू के..हार्दिक बधाई स्वीकारे.

किन्तु, हायकू शिल्प में तीनों पंक्तियाँ अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखती हैं ( ऐसा नहीं होता कि एक ही पंक्ति को तीन टुकड़ों में तोड़ कर लिखा जाए ) शिल्प के इस बिंदु पर यह हायकू एक बार पुनः ध्यान चाहते हैं 

शुभकामनाएं 

.

Comment by Neelam Upadhyaya on December 9, 2013 at 7:21pm

मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

Comment by Meena Pathak on December 9, 2013 at 2:38pm

सुन्दर हाइकू 
बधाई आ० नीलम जी 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 9, 2013 at 1:08pm

बेहद सुन्दर हाइकू आदरणीया सभी पसंद आये खास इसके लिए विशेष बधाई स्वीकारें

माँ का दुलार

कितना भी हो, लगे

ओस की बूँद ... वाह वाह वाह

Comment by coontee mukerji on December 8, 2013 at 4:08pm

बहुत सुंदर.

Comment by savitamishra on December 8, 2013 at 9:55am

bahut khubsurat .......

माँ का दुलार

कितना भी हो, लगे

ओस की बूँद

कृपया ध्यान दे...

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