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कुछ ज़िन्दगी का साथ मैंने यूं निभाया ..
कभी आग पे चली और कभी लुत्फ़ उठाया ..

कभी तूफ़ान से लड़ी तो कभी साथ उड़ चली ..
जीवन के रंग रूप को जी कर है सजाया..

क्या वक़्त क्या बेवक्त ,ज़िन्दगी तो ज़िन्दगी..
जैसे मिली मुझे जब मिली , गले से लगाया ..

क्या करूं है इश्क उससे कैसे मैं छोड़ दूं..
इसकी खूबसूरती को दिल में बसाया.. 

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Comment by Lata R.Ojha on January 25, 2011 at 6:27pm
धन्यवाद अजय सिंह जी :)
Comment by Ajay Singh on January 22, 2011 at 8:59pm

.....bahut hi sunder......

 

Comment by Lata R.Ojha on January 20, 2011 at 7:15pm
Shukria Veerendra ji :)
Comment by Veerendra Jain on January 20, 2011 at 3:56pm
Lata ji...salaam aapko.... behad khubsurat vichar hain...bahut bahut badhai...
Comment by Lata R.Ojha on January 20, 2011 at 3:41pm
धन्यवाद योगराज जी :) आप सबके प्रोत्साहन से ही तो और अधिक और बेहतर लिखने की प्रेरणा मिलती है :)

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on January 20, 2011 at 2:10pm
लता जी, ज़िंदगी के प्रति सकारात्मक रवाय्ये को उजागर करती आपकी यह काव्य-कृति बहुत मनभावन लगी ! बधाई स्वीकार कीजिये !

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