मिले तुम इत्तिफाक अच्छा था ।
हसरते दिल फिराक अच्छा था ।
मुझ से बोला कि प्यार है तुमसे ,
आपका वो मज़ाक अच्छा था ।
पाके खोया तुम्हे तो ये पाया ,
मै तनहा ही लाख अच्छा था ।
नज़रें फेरे जो तुमको देखा तो ,
लम्हा वो दर्द नाक अच्छा था ।
प्यार में मेरे हज़ारों कमियाँ ,
तेरा धोखा तो पाक अच्छा था ।
कस्मे वादे रहीं न रस्में वफ़ा ,
दिल दिल का तलाक अच्छा था ।
मौलिक व अप्रकाशित
नीरज
Comment
अच्छी प्रस्तुति हुई है नीरज जी, बधाई स्वीकार कर लेंगे |
कस्मे वादे रहीं न रस्में वफ़ा ,
दिल दिल का तलाक अच्छा था ।// बढ़िया कथ्य के साथ बढ़िया गजल है| बहर भी साथ होती तो बढ़िया होता|
AAP TANHA H I LAKH ACHCHE HAIN
AAPKE LAFJE SHUMAR ACHCHE HAIN
नीरज मिश्रा जे सुन्दर प्रयास है ... लय को और साध लें तो ग़ज़ल और सध जाए
भाई जी अगर बहर भी लिख देते तो अच्छा होता.
आपके इस कहन पर आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय नीरज मिश्रा जी,
आपके अंदाज-ए-बयां का तो मैं कायल हो गया। बहुत खूबसूरज ग़ज़ल कही आपने।
एक-एक शब्द उनकी बेवफाई पर कटाक्ष करता है, बहुत खूब।
पाके खोया तुम्हे तो ये पाया ,
मै तनहा ही लाख अच्छा था ।
ग़ज़ल का बेहतरीन हिस्सा है। उत्कृष्ट रचना सृजन के लिए दिल की गहराइयों से शुभकामनाएं
स्वीकार करें। आपकी और प्र्रस्तुतियों का ब्रेसब्री से इंतजार रहेगा।
जय हो, दाद कबूलें इस सुंदर प्रस्तुति पर, सादर
मिले तुम इत्तिफाक अच्छा था ।
हसरते दिल फिराक अच्छा था ।
मुझ से बोला कि प्यार है तुमसे ,
आपका वो मज़ाक अच्छा था ।
वाह भाई वाह ज़ोरदार ग़ज़ल ////// बहुत बहुत बधाई आपको आ0 नीरज जी ।
खूबसूरत गजल के लिए बधाई आपको आ0 नीरज जी ।
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