For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रलय या आपदा [आल्हा छंद ] प्रथम प्रयास

रूद्र रूप ले आए भोले ,मचा प्रलय से हाहाकार
मानव आया कुदरत आड़े,उजड़ गए लाखों परिवार
यहाँ जिन्दगी चहका करती,अब हैं लाशों के अम्बार
दोहन लेकर आया विपदा,हम मानस ही जिम्मेवार


उमड़ घुमड़ बादल जो आए,छम छम कर आई बरसात
ध्वस्त हुए सब मंदिर मस्जिद,दिन में ही हो आई रात
कुदरत हुई खून की प्यासी, प्रलय मचा है चारों ओर
कुपित शिवा जलमग्न हो गए,आया है कलयुग घनघोर

      ..............मौलिक व अप्रकाशित...............

Views: 844

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on July 2, 2013 at 1:13pm

सभी मित्रों का हार्दिक धन्यवाद 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 30, 2013 at 8:53pm

सुन्दर और सामयिक आल्ल्हा छंद रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया सरिता भाटिया जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 30, 2013 at 2:10am

आदरणीया,समयोचित, सुंदर प्रस्तुति. बधाई. सादर

Comment by विजय मिश्र on June 29, 2013 at 4:53pm
प्रकृति स्वेम संतुलन बनाती है और उसे प्रवंचित या उपेक्षित करने का भ्रम कोई न पाले.बचपन में आल्हा सुनने के सुअवसर प्राप्त थे और आज मैंने आपके छंदों को देख सस्वर पाठ का लोभ संवरण न कर सका . विनाश और प्रबरता के वर्णन के लिए इस छंद का चयन उपयुक्त है . साधुवाद सरिताजी .
Comment by Shyam Narain Verma on June 29, 2013 at 4:36pm

बहुत ही सुंदर व मर्मस्पर्शी रचना..................

Comment by vijay nikore on June 29, 2013 at 7:35am

आदरणीया सरिता जी,

 

‘बेटी’ शब्द के प्रयोग से in turn मुझको मान देने के लिए आपका धन्यवाद।

 

सुखी रहो।

विजय निकोर

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:46pm

आदरणीय विजय सर ऐसा कहकर आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं 

बेटी को किसी भी नाम से पुकारो चलेगा 

मैं तो सिर्फ बता रही थी कृपया ऐसा न ही सोचें न ही कहें 

Comment by vijay nikore on June 28, 2013 at 6:39pm

आदरणीया सरिता जी:

 

मुझसे भूल हुई, मैं शर्मिन्दा हूँ, क्षमाप्रार्थी हूँ।

कृपया क्षमा करें।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:20pm

basant nema sir aapne thik kaha jaisa beej bona hai vaisa hi fal pana hai 

Comment by Sarita Bhatia on June 28, 2013 at 6:19pm

aadarniye vijay nikore ji mera naam sarita hai 

hardik abhaar 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
6 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
13 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service