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बूंद बना फिर गिरा धरा पर 
जल बन कर इतराता 
भरता ताल, तलैया, पोखर 
सर, सरवर भर जाता 
..........................
और नदी की गति बढ़ाता 
सरिता वेगवती कहलाता 
बाग, वाटिका, उपवन सारे   
सिंचित करता जाता 
जल बन कर इतराता 
...........................
निर्झर झरते इसी से सारे 
झरने कितने प्यारे प्यारे 
सरि की राह समुंदर कर 
फिर समुद्र में मिल जाता 
जल बन कर इतराता 
............................
बहता जाता कभी न रुकता 
सदा प्रवाह कभी न थकता 
गिरता किन्तु प्रपात कहाता 
 इन्द्रधनुष  संग लाता 
जल बन कर इतराता 
............................
जल जीवन में अमूल्य है 
जल बिन सब निर्मूल्य है 
कुछ जल बनता वाष्प और 
कुछ भूमिगत हो जाता 
जल बन कर इतराता 
...............................
मौलिक व् अप्रकाशित ...२७-१०-०९ ...१:३९ पूर्वान्ह  

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Replies to This Discussion

सुंदर अभिव्यक्ति गीतिका जी वाकई जल है तो कल है.....................................बहुत खूब

बहुत सुंदर रचना गीतिका जी वाकई जल है तो कल है..................................बधाई

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