For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उजाला चाहते हैं वज्म में खुद जलना होगा,
सफर तय करना है तो गिर कर सम्भलना होगा।
इतनी आसानी से मंजिल नहीं मिलती यारों,
जिन्दगी की रफ्तार को कुछ बदलना होगा॥

मंहगाई की रफ्तार यूँ बढ़ती जा रही है,
इसी के इर्द- गिर्द दुनिया सिमटती जा रही है।
तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥

सुना है उसने एक नई कार खरीद ली,
समझता है जिन्दगी में रफ्तार खरीद ली।
पर क्या पता उस नादान अहमक को,
अपने पाले में मुसीबत बेकार खरीद ली॥

जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।
तो होती है खुशियों की बारिस सदा,
अगरचे हर कदम पर शूल होते हैं॥

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 4:03pm

बहुत सुन्दर और सामयिक मुक्तक के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 8:57am

वाह! बढ़िया मुक्तक.

 

Comment by Kedia Chhirag on April 14, 2013 at 7:17pm

बेहद ही सुन्दर एवं सारपूर्ण अभिव्यक्ति ....हार्दिक बधाई भाई ....

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:22pm

जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।
तो होती है खुशियों की बारिस सदा,
अगरचे हर कदम पर शूल होते हैं॥

आदरणीय विनय जी 

सत्य है. 

बधाई 

सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:10pm

आ0 विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी, ’तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥...’ अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by vijay nikore on April 14, 2013 at 1:55pm

//जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।//

अति सुन्दर। बधाई।

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:46pm

मंहगाई की रफ्तार यूँ बढ़ती जा रही है,
इसी के इर्द- गिर्द दुनिया सिमटती जा रही है।
तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥

सटीक टिप्पणी भाई //
सुन्दर हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on April 14, 2013 at 9:40am

सुना है उसने एक कार खरीद ली

समझता है जिंदगी में रफ्तार खरीद ली .बहुत सुन्दर . सादर कुंती

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 11:53pm

उसूलों की बात अब यहां समझता कौन है
बेवजह की नुमाइश से भी बचता कौन है
हर कोई भागता दौड़ता नजर आएगा
ठोकरों के बिना आखिर सम्हलता कौन है

विन्ध्येश्वरी भाई इस सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service