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बोल क्या कमी रही....

हर राह पर तेरी रजा
तू ही सनम तू ही खुदा
तो क्यों ही तेरे फैसलों पे
धूल सी जमी रही
बोल क्या कमी रही

क्यों ही तेरे दिल में वो, गैर ही बसा रहा,
क्यों लचकती बांह में गुल वही कसा रहा|
मैं भी तो पलाश बन बिछा था तेरी राह में,
मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में|
क्यों दुआ में जागती
फिर आँख में नमी रही
बोल क्या कमी रही?

कैसे तेरे दिल से मैं नाम उसका खींच लूं,
या कि अपनी चाहतों के मैं गले ही भींच दूं|
तू देख मेरे हाथ से तिनके भी छूटते हुए,
तू देख नन्ही तितलियों के पंख टूटते हुए|
और वो खुदाई अपनी
नींद में रमी रही
बोल क्या कमी रही.....
-पुष्यमित्र

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Comment

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Comment by Aarti Sharma on February 25, 2013 at 5:29pm

वाह  बहुत खूब पुष्यमित्र जी..सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें...

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on February 23, 2013 at 7:05pm
आदरणीय पुष्यमित्र जी! आपने प्रेम के टूटन को जादुई शब्दों में पिरोया है।शब्द-शब्द मन में लकीर खींचते हुये गहरे तक उतर जाते हैं।
/मैं भी तो बहार सब लुटा रहा था चाह में।/ऐसा एक पहला वियोगी कवि ही कह सकता है।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 23, 2013 at 6:43pm

प्रेम में मिली हताशा,  टूटन और व्यथा को सुन्दर शब्द मिले हैं.  भुक्तभोगी शैली में कही गयी इस रचना े शब्द यथानुरूप भावुक हैं.  रचना में यथोचित प्रवाह है. 

अपने रचनाकर्म के कैनावस पर अन्य भाव रंगों को प्रयुक्त करने का भी प्रयास करें. 

शुभेच्छाएँ. ..

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 23, 2013 at 6:37pm

आदरणीय अजय सर, मंजरी दीदी
अनुज का प्रणाम स्वीकार कीजिये

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 23, 2013 at 6:36pm

प्राची दीदी आपका स्नेह सदैव मुझे मिलता है
स्नेह के लिए प्रणाम स्वीकार कीजिये

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 23, 2013 at 6:33pm

राम जी बहुत बहुत धन्यवाद् जी

Comment by Pushyamitra Upadhyay on February 23, 2013 at 6:32pm

आदरणीय बागी सर,
आपका कोटि कोटि आभारी हूँ
स्नेह बनाये रखिये :)

Comment by mrs manjari pandey on February 23, 2013 at 5:58pm

आदरणीय पुष्यमित्र जी " क्यों दुआ में जगती फिर आँख में नमी रही"  भावुक कर गई रचना बधाई।

Comment by Dr.Ajay Khare on February 23, 2013 at 5:57pm

upadhya ji dil se nikali rachana hai dil ko choo gai badhai


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2013 at 3:25pm

वियोग के दर्द से बिलखती रचना बहुत प्रवाहमय लिखी है आदरणीय पुष्यमित्र जी 

तू देख मेरे हाथ से तिनके भी छूटते हुए,............पल पल उम्मीदों का टूटना 
तू देख नन्ही तितलियों के पंख टूटते हुए|...........मासूम दिल के टूटते जाने को बहुत सुन्दर शब्द मिले हैं 

हार्दिक बधाई 

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