भोर के पंछी
तुम ...
रहस्यमय भोर के निर्दोष पंछी
तुमसे उदित होता था मेरा आकाश,
सपने तुम्हारे चले आते थे निसंकोच,
खोल देते थे पल में मेरे मन के कपाट
और मैं ...
मैं तुम्हें सोचते-सोचते, बच्चों-सी,
नींदों में मुस्करा देती थी,
तुम्हें पा लेती थी।
पर सुनो!
सुन सकते हो क्या ... ?
मैं अब
तुम्हें पा नहीं सकती थी,
एक ही रास्ता बचा था केवल,
मैं .. मैं तुमसे दूर जा सकती थी,
दू...र, बहुत दूर चली गई।
पर दूर जाती छूटती दिशाओं को पकड़ न सकी
अपनी कुचले-इरादों-भरी ज़िन्दगी से उन्हें मैं
हटा न सकी, मिटा भी न सकी,
हाँ, मिटाने के असफ़ल प्रयास में हर दम
मैं स्वयं कुछ और मिटती चली गई ....
जो कभी देखोगे मुझको तो पहचानोगे भी नहीं,
मैं वह न रही कि जिसको तुम जानते थे कहीं,
प्यार से पुकारते थे तुम,
या, शायद पुकारते हो प्यार से अभी भी
अपनी दीवानगी में ... कभी-कभी।
प्रवाहित हवाओं को मैं रोक न सकी,
गति को उनकी मैं थाम न सकी
गंतव्य को जान न सकी।
यह हवाएँ जो ले आती हैं तुम्हारी पुकार
हर भोर मेरे पास, इतनी पास,
यह मुझको बींध-बींध जाती हैं ...
मेरे भोर के सुनहले पंछी
तुम तो वही रहे
मैं वही रह न सकी।
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विजय निकोर
vijay2@comcast.net
Comment
बहुत सुन्दर भाव और उतनी ही सुन्दर अभिव्यक्ति, हार्दिक बधाई प्रेषित है.
आदरणीया आरती जी:
मैं २४ फ़रवरी से ५ मार्च तक समुद्र-यात्रा पर था और कम्पयूटर उपलब्ध नहीं था, अत: हो सकता
है उसी कारण उन दिनों यह प्रतिक्रिया पढ़ने से रह गई। मुझको इस भूल का हार्दिक खेद है।
//लाजवाब और दिल को छुती पंक्तियाँ//
आपने मेरी कविता की भावनाओं को सराह कर मुझको मान दिया है...
मैं आपका आभारी हूँ।
सादर,
विजय निकोर
बहुत खूब आदरणीय सर...लाजवाब और दिल को छुती पंक्तियाँ ..बधाई स्वीकारें..
आदरणीया अन्वेषा जी,
आपकी मार्मिक प्रतिक्रिया ही कविता समान है।
जी हाँ, जब मैंने यह भाव किसी के मन में उतर कर लिखे तो लगा कि मैं नही, वह लिख रही थी।
यूँ तो कोई भी रचना मैं नहीं लिखता, प्रत्येक भाव और शब्द प्रभु की देन है, जो वह मेरी कलम को
दे देते हैं।
भोर के पंछी की इतनी सराहना के लिए आपका शत-शत आभार।
विजय निकोर
आदरणीय प्रदीप जी,
सराहना के लिए आपका अतिशय धन्यवाद।
विजय निकोर
kisi dusre ke najariye se sochna aur likhna....jo humse dur jaakar bhi hum se juda hai...jo humse na juda hone ka kasam khane ke bawajud juda ho gaya...uski soch...adhbhut...hridaysparshi.......Naman aapko
सर जी
सादर
सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई
राजलक्ष्मी जी,
सराहना के लिए अतिशय धन्यवाद।
विजय निकोर
बहुत सुन्दर ...:)
आदरणीय नादिर ख़ान जी,
कविता को इतनी सराहना देने के लिए नमन और धन्यवाद।
विजय निकोर
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