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अभिनव प्रयोग- उल्लाला मुक्तक: -संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-
उल्लाला मुक्तक:
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला है लहर सा,
किसी उनींदे शहर सा.
खुद को खुद दोहरा रहा-
दोपहरी के प्रहर सा.
*

झरते पीपल पात सा,
श्वेत कुमुदनी गात सा.
उल्लाला मन मोहता-
शरतचंद्र मय रात सा..
*

दीप तले अँधियार है,
ज्यों असार संसार है.
कोशिश प्रबल प्रहार है-
दीपशिखा उजियार है..
*
मौसम करवट बदलता,
ज्यों गुमसुम दिल मचलता.
प्रेमी की आहट सुने -
चुप प्रेयसी की विकलता..
*

दिल ने करी गुहार है,
दिल ने सुनी पुकार है.
दिल पर दिलकश वार या-
दिलवर की मनुहार है..
*

शीत सिसकती जा रही,
ग्रीष्म ठिठकती आ रही.
मन ही मन में नवोढ़ा-
संक्रांति कुछ गा रही..
*

श्वास-आस रसधार है,
हर प्रयास गुंजार है.
भ्रमरों की गुन्जार पर-
तितली हुई निसार है..
*
रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ-
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*

वह प्रभु तारणहार है,
उस पर जग बलिहार है.
वह थामे पतवार है.
करता भव से पार है..
*

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on February 6, 2013 at 5:20pm

लक्ष्मण जी, राजेश जी, राम शिरोमणि जी, अरुण जी, अजय जी
आप सबका हार्दिक धन्यवाद इस नए प्रयोग को सराहने के लिए.

Comment by Dr.Ajay Khare on February 4, 2013 at 2:50pm

bhai sahib badia he badhiya hi hota he 

Comment by अरुन 'अनन्त' on February 4, 2013 at 11:40am

आदरणीय सर प्रणाम, आपका अंदाज ही निराला है शानदार प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई स्वीकारें. पहली बार उल्लाला मुक्तक: पढ़ने को मिली है आनंद के साथ-साथ एक नई विद्या सीखने को मिली आपका आभार सर. सादर

Comment by ram shiromani pathak on February 4, 2013 at 11:26am

आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल' sir a Grand salute  of uuuuuuuuuuuuuuuuuu.......what a thought what a writingggggg


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 3, 2013 at 8:34pm

रचा पाँव में आलता,
कर-मेंहदी पूछे पता.
नाम लिखा छलिया हुआ- 
कहो कहाँ-क्यों लापता?
*आपके सभी उल्लाला मुक्तक शानदार हैं पर यह तो विशेष है जितनी तारीफ करूँ वो भी कम होगी हार्दिक बधाई 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on February 3, 2013 at 6:31pm

आपके एक से एक नव प्रयोग बहुत उत्साह से पढने का मन करता है और पढ़ते ही कुछ नया और पाने को लालायित रहता है । आपकी सम्रद्ध लेखनी को सलाम आदरणीय संजीव वर्मा 'सलिल'जी -

वह प्रभु तारणहार है, उस पर जग बलिहार है. 

वह थामे पतवार है. करता भव से पार है..
उसपर संजीव सलिल सवार है 
उनकी पूँछ पकडे हम भी -
होंगे भाव सागर से पार है ।
आभार के वे हक़दार है ।

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