For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो

शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

हमने जिसको अपना समझा, पीठ मे खंजर उसने घोपा है।
आज बता दो उनको की, अब ये आखिरी धोखा है।
अब फूल नही हाथो मे तलवार हमे उठाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

कभी सुर से कभी ताल से, रिश्ते बेहतर हमने निभाये है ।
उन ने छेडा राग घृणा का, हमने गीत प्यार के गाये है
बहुत गा चुके राग अमन का, अब रणभेरी हमे बजाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

टूट गया है सब्र बाँध का, अब सहन नही कर पायेंगे ।
दो शीश कटे है हमारे, वहाँ से नरमुंड हार पहन के आयेंगे ।
त्रिशक्ति को अब जालिम पे, कोहराम तो बरपाने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

भुल गया है वो शायद इतिहास अपनी हार का ।
कैसे मुँह तोड दिया था, जबाब तेरे हर वार का ।
पहले हमने छोड दिया था, अबकी तिरंगा वहाँ लहराने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

जंग न लगने पाये हमारे, फौलादी जज्जबातो को ।
हुंकार भरो और जगा दो, देश के हुक्ममरानो को ।
बातो का अब काम नही, सीमा पे फैसले होने दो । आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

शंखनाद हो रण का, अब जंग आखिरी हो जाने दो ।
आर नही अबकी, पार हमे हो जाने दो ।

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 408

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत नेमा on January 22, 2013 at 10:44am

आ. प्राची जी आ. राजेश कुमारी जी .. आप के सहयोग और आशिर्वाद के लिये धन्यवाद ... ये प्रशंसा हमे आंगे बढने के लिये प्रेरणा देगा 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 21, 2013 at 6:32pm

सुन्दर सामयिक सशक्त गीत के लिए बधाई बसंत जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2013 at 5:07pm

बेहतरीन भाव वीर रस से ओतप्रोत प्रस्तुति हेतु बधाई 

Comment by बसंत नेमा on January 20, 2013 at 1:21pm

श्री गणेश जी,श्री अरुन जी , श्री राम शिरोमणी जी आप का बहुत बहुत साधुवाद ...... आप की बधाई शिरोधार ....धन्यवाद

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 20, 2013 at 11:03am

वीर रस से ओतप्रोत बेहद शानदार प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकारें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 19, 2013 at 3:03pm

वीर रस से पगी एक अच्छी रचना, बधाई स्वीकार करें आदरणीय नेमा जी ।

Comment by ram shiromani pathak on January 18, 2013 at 7:26pm

उत्तम अति उत्तम महोदय ,कुछ ऐसा ही करने की आवस्यकता है !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
yesterday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service