For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम अगन को बांधो कितना,..

लाख झूठ चाहे स्वर बोलें,
मौन मगर सच कह जाये |
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये ||

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,
न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,
कैसे हाथों में रुक जाता||

तुम कई लगा लेना बंधन,
बहना है इसको बह जाये|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||1||

बीज घृणा के बोने वाले,
भ्रम के कितने यंत्र करोगे|
जिस आश्रय में जीवित है जग,
क्या उसको परतंत्र करोगे||

तोड़ ही दो अब घृणा का घट वो,
ये भीति महल भी ढह जाए|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||२||

-पुष्यमित्र उपाध्याय

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pushyamitra Upadhyay on September 23, 2012 at 9:55pm

aap sabhi mitron ka kotishah dhanyavaad ....aapna sneh mere liye prernadayak hai......aapke aashish ki humesha kaamna karta hoon...yu hi is anuj par prem bnaye rakhiye....

Comment by Rekha Joshi on September 23, 2012 at 7:25pm

तोड़ ही दो अब घृणा का घट वो,
ये भीति महल भी ढह जाए|
प्रेम अगन को बांधो कितना,
धुँआ तो जग में रह जाये||,खूबसूरत रचना पुष्यमित्र जी ,हार्दिक बधाई 

Comment by Brajesh Kant Azad on September 23, 2012 at 1:45am

अदभुत रचना पुष्यमित्र उपाध्याय जी , बहुत बधाई

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 22, 2012 at 12:07pm
वाह भाई श्री पुष्यमित्र उपाध्याय सुंदर भाव प्रेम तो अमर है, और इसीलिए आपकी ये पंक्तिया भा गयी -

ये प्रेम हुआ ये कृष्ण हुआ,न पहरों से है झुक पाता|

जो बन सुगंध हो चुका व्याप्त,कैसे हाथों में रुक जाता||

हार्दिक बधाई 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 22, 2012 at 10:06am

//बीज घृणा के बोने वाले,
भ्रम के कितने यंत्र करोगे|
जिस आश्रय में जीवित है जग,
क्या उसको परतंत्र करोगे||//

बहुत ही सार्थक रचना, एक सन्देश की लकीर खीचने में कामयाब है यह रचना, बहुत बहुत बधाई पुष्यमित्र जी, उम्मीद है कि आगे भी आपकी रचनाओं एवं अन्य सदस्यों की रचनाओं पर आपके बहुमूल्य विचारों से हम सभी लाभान्वित होते रहेंगे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
22 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service