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धुंए का शौक लग गया तो ज़िन्दगी गई

आज 31 मई विश्व  तम्बाकू  विरोधी दिवस पर एक  विशेष रचना


सुट्टों ने सोखा जिस्म, सेहतमन्दगी गई
धुंए का शौक लग  गया तो  ज़िन्दगी गई

छुप छुप के पीना छोड़, खुल्लेआम पी रहे
माँ की  लिहाज़,  बाप से शरमिन्दगी गई

गुटखा चबाने वाले की पिचकारी गज़ब थी
धोयी बहुत दीवार, पर न गन्दगी गई

ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई

अलबेलाजी दिन रात खोहों खोहों खांसते
पूजा, हवन,  नमाज़ गई,  बन्दगी गई

जय हिन्द !

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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 5:00pm
आपका शुक्रिया चन्दन राय जी..........
Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 4:06pm
अलबेला जी,
गुटखा चबाने वाले की पिचकारी गज़ब थी
धोयी बहुत दीवार, पर न गन्दगी गई,
संवेदनशील विषय पर खूब लिखा आपने ,
Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 1:53pm

धन्यवाद......अशोक कुमार रक्ताले जी...आपने उम्दा विस्तार दिया

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 1:48pm

सम्मान्य बागी जी,  आपकी सराहना और  हौसला अफज़ाई तो ठीक है लेकिन  'राजाकार" ने तो महफ़िल लूट ली........गज़ब ढा दिया  जी.,.,...मैंने कहा "बल्ले बल्ले"  कर दिया  ..हा हा हा "राजाकार धूम्र पान भूरापश्च स्वेत दंडिका"

मेरे ख्याल से ये आपने  फ़िल्टर  सिगरेट के लिए  फ़रमाया होगा ....अब लगे हाथ ये भी बता दीजिये कि बुड्ढा छाप बीड़ी को इस  दिव्यभाषा में  क्या कहेंगे?          

आपकी दाद सर आँखों पे हुज़ूर....बस आप देते रहिये....जय हो आपकी


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2012 at 11:07am

अलबेला जी एक विषय को सन्दर्भ बना कर बहुत ही प्यारी ग़ज़ल कही है, यह ग़ज़ल मंच लुटने की मादा रखती है, आप सुना कर देखिएगा...तालियाँ न बजी तो कहियेगा और प्रस्तुति के बाद आपके लिए राजाकार धूम्र पान भूरापश्च श्वेत दंडिका अवश्य आपकी खिदमत में हाजिर :-))))))))))) 

बहुत बहुत दाद स्वीकार कीजिये |

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2012 at 6:27am

आदरणीय अलबेला जी,
                              ज़र्दा चबा चबा के मुँह को सन्त कर दिया
                 अब स्वाद और मसालों की पसन्दगी गई
                 और इस पंक्ति को विस्तार दूँ तो फिर अस्पतालों में बाकी की जिंदगी गयी. अंतर्राष्ट्रीय तम्बाकू निषेध दिवस पर आपकी सुन्दर रचना. बधाई.

Comment by Albela Khatri on June 1, 2012 at 12:41pm

aapka khoob khoob  aabhaar Rekha Joshi ji,

aapki sarahna ka shukraguzar hoon.......

Comment by Albela Khatri on June 1, 2012 at 12:03pm
आभारी हूँ "सूरज" जी..........शुक्रिया .....
Comment by Albela Khatri on June 1, 2012 at 10:01am

आपका हार्दिक आभार आशीष जी.........बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by आशीष यादव on June 1, 2012 at 9:14am

बेहतरीन गजल। हास्य का सम्पुट लिये बेहतर सीख दे रही है।
शानदार गजल पर मेरी भी बधाई स्वीकारें

कृपया ध्यान दे...

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