For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सूखी नदी के सामने

(1)

मुकद्दर की बात.


कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल गए.

सुनते है पानीदार वो अफसर बदल गए.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

 

Views: 392

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AVINASH S BAGDE on November 15, 2011 at 11:03am

hriday se aabhar Arun bhai.

Comment by Abhinav Arun on November 14, 2011 at 4:02pm

सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,

पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

kamaal ki gahree baat kahta sher badhai bahut bahut !!

Comment by AVINASH S BAGDE on November 14, 2011 at 12:43pm
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on October 6, 2011 at 6:43pm

मुकद्दर की बात.


कोशिशें करते रहो,सद्दाम की तरह.
मिल पाए न 'कुवैत' मुकद्दर की बात है.
ऊँची उठाओ मेढ़,हिफाज़त के वास्ते,
खा जाये फसल खेत,मुकद्दर की बात है.
मीलों  यूँ सफ़र करके ,समंदर का लौटिये,
बन जाये कबर रेत,मुकद्दर की बात है.
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
(2)

हुकूमत के साथ-साथ ही दफ्तर बदल गए.

सुनते है पानीदार वो अफसर बदल गए.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.

सुन्दर रचना बहुत सही है,आपको बहुत-बहुत धन्यवाद.......................!!! 
Comment by आशीष यादव on October 2, 2011 at 12:19am

आदरणीय AVINASH S BAGDE साहब,

सुन्दर रचना की है आपने| सही बात है, सब मुकद्दर का ही खेल है, मुकद्दर अगर थोडा-बहुत बन सकता है तो सिर्फ कर्म से ही|

कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.
ये पंक्तियाँ पूरी की पूरी कहानी ही बयां करती हैं|
सुन्दर रचना हेतु बधाई|


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 1, 2011 at 9:28pm
कतरे लहू के पीजिये,औलाद के लिए,
हो जाये खूं सफ़ेद,मुकद्दर की बात है.
वाह वाह बहुत खूब बागडे साहब, सच कहा आपने, मुकद्दर के आगे किसी का बस नहीं चलता, खुबसूरत अभिव्यक्ति,
सूखी नदी के सामने बरसो खड़े थे जो,
पानी मिला तो प्यास के तेवर बदल गए.
बेहतरीन बेहतरीन, कुछ पक्तियों में आप अपने भाव को पूर्णरूपेण व्यक्त कर दिया है, बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
5 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service