धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।
सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात।
मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।
परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात।
हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास।
छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।
बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे
झोल।
गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात।
दिनभर धधके मेदिनी, ज्यों धवनी की आग।
शिकवा करके चाँद से, पाती शुभ सौगात।
नहा रहे ज्यों दूध से, फैल रही हो फैन।
शबनम बरसे रौप्य सी, तर हों तन तृण पात।
नयन नक्स पर नाज कर, मन में भर अभिमान।
चाँद देखती कामिनी, भूली निज औकात।
धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात ।
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय
धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात। ........ धरा चाँद जो मिल रहे, करते मन की बात .. गल शब्द वस्तुतः गला है.
जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।
जर्रा - जर्रा नींद में , ऊँघ रहा मदहोश।
सन्नाटे को चीरती, सरसर बहती वात। .......... सुंदर युग्म बन पड़ा है..
मेघ चाँद को ढाँपते , ज्यों पशमीना शाल।
परिवर्तन संदेश दे , चमकें तारे सात। .......... सतडरिया तारों (सप्तर्षि-मण्डल) का सुंदर बखान हुआ है
हूक हृदय में ऊठती, ज्यों चकवे की प्यास। ... ये ऊठना कैसा शब्द है, आदरणीय ? शुद्ध शब्द उठना है.
छत पर छिटकी चाँदनी, बेकाबू जज़्बात।
बिजना था हर हाथ में, सभी सुखी थे झोल। ... बिजना को क्यों पंखा नहीं लिखना ? यदि मैं सही समझ पा रहा हूँ. और इसे झोलना भी हिंदी भाषा में आम नहीं है.
गलियों में ही खाट पर, सोता था देहात। ... .. यह युग्म अपने यथार्थ सौंदर्य के कारण श्लाघनीय है
दिनभर धधके मेदिनी, ज्यों धवनी की आग।
शिकवा करके चाँद से, पाती शुभ सौगात। ... जय हो..
नहा रहे ज्यों दूध से, फैल रही हो फैन।
शबनम बरसे रौप्य सी, तर हों तन तृण पात। ... सुंदर ..
नयन नक्स पर नाज कर, मन में भर अभिमान। ........... नक्श न कि नक्स.
चाँद देखती कामिनी, भूली निज औकात। ....... कामिनी की औकात फिर है क्या ? क्या कमतर है ? तो फिर उला मिसरे में झो कहा गया है, वह क्या ?
विश्वास है, आप मेरी विवेचना को स्वीकार कर तदनुरूप प्रयास करेंगे, आदरणीय सुरेश कल्याण जी.
शुभातिशुभ
परम आदरणीय सौरभ पांडे जी व गिरिराज भंडारी जी आप लोगों का मार्गदर्शन मिलता रहे इसी आशा के साथ हार्दिक आभार ।
वाह वाह
आदरणीय, आपकी इस प्रस्तुति पर पुन: आऊँगा।
शुभातिशुभ
आदरणीय सुरेश भाई , बढ़िया दोहा ग़ज़ल कही , बहुत बधाई आपको
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