For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"बारहमासा"
"चैत्र" मे चित चिंतित, चंचल चहु चकोर।
प्रिया बिन सब सूना लगे, ना सुझे कौर॥
"वैशाख" वैरी विष समान, वल्लरी बन विलगाय।
दोबारा फूल खिलेंगे तभी, अनुकूल रितु को पाय॥
"ज्येष्ठ"; ज्वाला ज्वर जवान, तन-मन लागी आग।
प्रेम में बस यह दिया है, मिले दाग ही दाग॥
"आषाढ" आया आम्र-बौर, आग आक्रोश आकार।
अकेला मैं सुनो प्रिये, असहाय हर प्रकार॥
"श्रावण" सारा सम शशि, शीश लगे पूछ ओर।
वह तो करे सब प्रेमवश, सुप्रभात बुरा दौर॥
"भाद्रपद" भया भ्रमपूर्ण’ भय की शुरुआत।
विरहाग्नि प्रबल हुई’ लगी अंग-अंग खात॥
"आसौज" आया चौमासा गया, रहा खाली का खाली।
समाज-मर्यादा प्रधान रही, प्रिया कोयल मतवाली॥
"कार्तिक" कमनीय कौमार्य, काम लगे हर अंग।
पल-पल मैं यही सोचता, स्यात मिले प्रिया संग॥
"मार्गशीर्ष" मर्ममय मन, मैं मर्माहत मतंग।
मारा-मारा मर रहा’ कब जीत मिले प्रेम जंग॥
"पौष" प्रिया पास नहीं, परे-परे जाती जाए।
प्राण निकलकर अटके हलक, मरणासन्न कहलाए॥
"माघ" मारा मर रहा मैं, मिमियाना गया बेकार।
जनता-जनार्दन को सुने नहीं, चुनी हुई सराकार॥
"फाळ्गुन" फंसा फहमी गलत, बस आश्वासन मिलते।
षड रितु, बारहमाश अरि; क्यों पूल प्रेम के खिलते॥
                "आचार्य शीलक राम"

रचना "मौलिक व अप्रकाशित" है।

Views: 364

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आचार्य शीलक राम on December 29, 2022 at 8:51pm

Dr.Prachi Singh

जी आदरणीय

Comment by आचार्य शीलक राम on December 29, 2022 at 8:51pm

Samar kabeer

जी आदरणीय

Comment by Samar kabeer on December 12, 2022 at 2:23pm

जनाब आचार्य शीलक़ राम जी आदाब,ओबीओ पटल पर आपका स्वागत है I 

रचना का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें, मुहतरमा प्राची सिंह जी की टिप्पणी का अबापने अभी तक जवाब नहीं दिया, और देख रहा हूँ कि आप कई रचनाएँ मंच पर पोस्ट कर चुके हैं, ये सीखने सिखाने का मंच है, अगर आप वाक़ई सीखने के उद्देश्य से मंच के सदस्य बने हैं तो आपको हर टिप्पणी का उत्तर देना चाहिए,और सिर्फ़ एक के बाद एक रचना पोस्ट करना है तो करते रहें,एक बात ये कि मंच पर आई हुई दूसरी रचनाएँ भी आपकी क़ीमती टिप्पणी के इंतिज़ार में हैं इस तरफ़ भी ध्यान दें I 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2022 at 7:41pm

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय 
यह रचना दोहा छंद के बहुत निकट है , बस थोड़ा सा लय और मात्रिकता का ध्यान रख कर इस छंद को सहज ही साधा जा सकता है..

इस रचना पर  मैं विस्तार से आती हूँ तब तक निवेदन है कि भारतीय छंद विधान समूह में संग्रहीत मात्रिकता और छंदों के कुछ आवश्यक मूलभूत आलेखों का अवलोकन कर लीजिये

सादर  

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service