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 अब  झूठ  राजनीति  में  दस्तूर  हो गया
 जिस का हुआ विरोध वो मशहूर हो गया।१।
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 जनता के हक में बोलते जो काम बोझ है
 नेता के हक में  काम  वो  मन्जूर हो गया।२।
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 कहते हो वोट  शक्ति  का पर्याय है अगर
 क्यों लोक आज देश का मजबूर हो गया।३।
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 जो चाहे मोल दे  के  करा लेता काम है
 कानून  जैसे  देश का  मजदूर  हो गया।४।
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 जनता न राजनीति की मन्जिल बनी कभी
 उपयोग उस  का  राह  सा  भरपूर हो गया।५।
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 होता भला न कोई भी मचती है लूट बस
 कुर्सी का  खेल  देश  को  नासूर हो गया।६।
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 पुरखों ने राह समझी थी जन के भले की है
 मकसद से  लोकतंत्र  ये  क्यों  दूर  हो गया।७।
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 मौलिक/अप्रकाशित
 लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
आ. भाई ब.जेश जी, सादर अभि्आदन। गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
बहुत ही शानदार सार्थक ग़ज़ल कही आदरणीय धामी जी
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