ख़ुद को ऐसे सँवार कर जागा 
 यानी उस को पुकार कर जागा.    
 .
 एक अरसा गुज़ार कर जागा 
 ख्व़ाब में ख़ुद से हार कर जागा.
 .
 तेरी दुनिया बहुत नशीली थी 
 जिस्म को अपने पार कर जागा.
 .
 आंखें तस्वीर की बिगाड़ी थीं   
 उनका काजल सुधार कर जागा. 
 .
 ख़ुद-परस्ती में मैं उनींदा था  
 फिर अना अपनी मार कर जागा. 
 .
 शम्स ने तीरगी पहन ली थी 
 सुब’ह चोला उतार कर जागा. 
 .
 रात भर आईने की आँखों में 
 दर्द अपने उभार कर जागा. 
 .
 रात यादों की जेल टूट गयी 
 सारे मुजरिम फ़रार कर जागा..
 .
 निलेश "नूर"
 मौलिक/ अप्रकाशित 
Comment
धन्यवाद आ. ममता जी
धन्यवाद आ. समर सर
धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई
जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
सादर प्रणाम नीलेश सर
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है
सहृदय बधाई
धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
    © 2025               Created by Admin.             
    Powered by
     
    
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online