For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- बलराम धाकड़ (चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से)

1212,1122,1212,22/112

तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से।

हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से।

चराग़ ही के तले क्यों अंधेरा होता है,
ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से।

वो सूखती हुई बेलों को सींचकर देखें,
ख़ुदा मिला है किसे घंटियाँ बजाने से।

शमां जलेगी, अंधेरे पनाह मांगेंगे,
हुई है रात उमीदों की लौ बुझाने से।

ये रोज़-रोज़ के फ़ाके हमें नहीं मंज़ूर,
चलो कि दूर चलें ऐसे आशियाने से।

तुम्हारी याद यहाँ चैन से न जीने दे,
ख़ुदा निज़ात ही दे दे अब इस फ़साने से।

~ बलराम धाकड़ ।

(मौलिक/अप्रकाशित)

Views: 861

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Balram Dhakar on January 17, 2019 at 1:30pm

बहुत शुक्रिया, आदरणीय विनय कुमार जी, सुख़न नवाज़ी का।

सादर।

Comment by विनय कुमार on December 27, 2018 at 6:12pm

वाह, बहुत बढ़िया और प्रभावशाली ग़ज़ल कही है आपने आ बलराम जाखड़ जी, बधाईया क़ुबूल कीजिये

Comment by Balram Dhakar on December 20, 2018 at 9:38am

आदरणीय सुरेंद्र जी, ग़ज़ल आपको पसंद आई, मेरा लिखना सार्थक हुआ।

सादर।

Comment by नाथ सोनांचली on December 20, 2018 at 9:29am

आद0 बलराम धाकड़ जी सादर अभिवादन। बढिया ग़ज़ल कही आपने। दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ

Comment by Balram Dhakar on December 18, 2018 at 9:10am

आदरणीय समर सर, सादर अभिवादन। ग़ज़ल में आपकी शिरक़त की प्रतीक्षा समाप्त हुई और हर बार की तरह बहुत कुछ सीखने को भी मिला।

हौसला अफजाई का भी बहुत बहुत शुक्रिया।

आपके सुझावों के मुताबिक़ सुधार कर लूँगा।

सादर।

Comment by Samar kabeer on December 17, 2018 at 2:26pm

जनाब बलराम धाकड़ जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

तमाम ख़्वाब जलाने से, दिल जलाने से।
चलो धुंआ तो उठा, इस गरीबख़ाने से'

इस शैर के ऊला मिसरे में 'जलाने से', शब्द दो बार खटक रहा है,ऊला मिसरा यूँ कर सकते हैं:-

'तमाम ख़्वाब जले अपना दिल जलाने से'

' हमें अदा न करो हक़, हिसाब ही दे दो,
नदी खड़ी हुई है दूर क्यों मुहाने से'

इस शैर को यूँ कर लें तो गेयता बढ़ जाएगी:-

'हमारा हक़ न अदा कर हिसाब तो दे दे

खड़ी हुई है नदी दूर क्यों मुहाने से'

' ये राज़ खुल न सकेगा कभी ज़माने से'

इस मिसरे में रदीफ़ 'से' की जगह 'पे' हो रही है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'ये अक़्द: हल नहीं होगा कभी ज़माने से'

' शमां जलेगी, अंधेरे पनाह मांगेंगे'

ये मिसरा बह्र में नहीं,क्योंकि सहीह शब्द है "शम'अ"21,आपने इस शब्द को 12 लिया है,इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-

'जलेगी शम'अ अँधेरे पनाह माँगेंगे'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by Balram Dhakar on December 15, 2018 at 9:50am

आदरणीय नरेंद्र जी, बहुत बहुत धन्यवाद।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on December 15, 2018 at 9:50am

जनाब राज़ साहब, सुख़न नवाज़ीका बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Balram Dhakar on December 15, 2018 at 9:49am

ग़ज़ल में शिरक़त और हौसला अफजाई का बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय लक्ष्मण जी।

सादर।

Comment by Balram Dhakar on December 15, 2018 at 9:48am

बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय चंद्रशेखर जी।

सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
22 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
23 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service