For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

टूट कर बिखरते
हौले हौले संवरते
क्या देखा है आपने?
किसी कविता को,
गिरते-संभलते !!
मैंने देखा है--
अगणित बार..
हृदय-तल पर
शब्दो की उंगलियों का
सहारा पा-
किसी नन्हे शिशु की भांति
डगमगाते हुवे
एक एक कदम उठाते !
फिर आहिस्ता आहिस्ता
वाक्यों के लंबे लंबे डग
नापते !
हाँ देखा है मैंने!
कविता को-
टूटते-संवरते,
गिरते-संभलते,
बनते-बिगड़ते !!

मौलिक एवं अप्रकाशित
(अतुकांत कविता)

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by V.M.''vrishty'' on October 14, 2018 at 4:45pm
आदरणीय नीलम जी, प्रणाम! आत्मीय आभार।
Comment by Neelam Upadhyaya on October 13, 2018 at 4:18pm

आदरणीया विष्ट जी, बहुत ही सुन्दर अतुकांत रछ्ना। प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई।  

Comment by V.M.''vrishty'' on October 13, 2018 at 11:30am
आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह जी, अभिवादन! उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद!
Comment by नाथ सोनांचली on October 13, 2018 at 10:59am

आद0 वी एम वृष्टि जी सादर अभिवादन। बढिया अतुकांत सृजित किया आपने। बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 3:48pm

आदरणीय समर कबीर जी! आपके सुझाव के लिए बहुत बहुत आत्मीय धन्यवाद! 

आपका मार्गदर्शन मिलता रहे हमेशा! ....सादर

Comment by Samar kabeer on October 12, 2018 at 1:24pm

पहले आप अपनी कोई ग़ज़ल मंच पर साझा करें,देखते हैं उसमें क्या सुधार की गुंजाइश है, और इसके अलावा आप ओबीओ पर मौजूद समूह "ग़ज़ल की कक्षा" और "ग़ज़ल की बातें" में उपलब्ध आलेखों का अध्यन करें तो आपकी बहुत सी उलझनें दूर हो सकती हैं ।

Comment by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 12:01pm

आदरणीय समर कबीर जी, दुष्यंत जी के संदर्भ में पूछने का मेरा उद्देश्य  यही था कि मैं ग़ज़ल लिखती तो हूँ,,लेकिन वो ग़ज़ल के पैमाने पर खरे नही उतरते। और ग़ज़ल की जटिलताओ का ज्ञान मुझे अब जा के हुआ है। ग़ज़ल सुनना पढ़ना मुझे किशोरावस्था से ही पसंद है। और मैंने तभी लिखने का प्रयास शुरू कर दिया था। कई सारी रचनाये की मैंने। जिनमे लय और भाव की तो कमी नही मगर बहर बिल्कुल भी सही नही।

अब मेरी उलझन ये है कि इन रचनाओ को नाम क्या दूँ???? 

Comment by Samar kabeer on October 12, 2018 at 11:55am

'वृष्टि 'जी,मैं दुष्यंत कुमार जी का पक्षधर हूँ या नहीं इससे क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है?

दुष्यंत कुमार पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है, उसे आप पढ़ सकती हैं,और इस जगह इस पर बात करने से क्या हासिल,यहाँ मैं आपसे सवाल करता हूँ कि क्या आप ग़ज़ल भी लिखती हैं?

Comment by V.M.''vrishty'' on October 12, 2018 at 11:22am

आदरणीय समर कबीर जी, यानी आप दुष्यंत कुमार जी के पक्षधर नही हैं??

उनकी रचनाये आपके मानक पर खरी नही उतरती?

दुष्यंत जी की रचनाये किस विधा पर आधारित है?? क्या नाम दिया जाए उनको?

कृपया मेरी उलझन का समाधान करें।

Comment by Samar kabeer on October 12, 2018 at 10:42am

ग़ज़ल विधा तो बह्र में ही होती है,और अच्छी लगती है,हिन्दी ग़ज़ल जिसे गीतिका कहते हैं वो भी मात्राओं के अधीन ही होती है,इसलिये आज़ाद ग़ज़ल के चाहने वाले भी हैं लेकिन बड़ी संख्या बह्र में कहने वालों की है, और मैं भी उसका समर्थक नहीं हूँ ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service