For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दुनिया (लोककथा)

एक लड़का था । बचपन में ही उसके माता-पिता गुजर गए । उसका लालन-पालन उसके नाना ने किया । लड़का अभी आठ-नौ साल का था तभी उसपर दुनिया देखने का भूत सवार हो गया । वह बार-बार अपने नाना से कहता कि मैं दुनिया देखना चाहता हूँ ? नाना समझाते कि बेटा अभी तो तुम्हारे पास बहुत समय है, जब तू बड़ा होगा, दुनियादारी में लगेगा तो तूझे खुद मालूम हो जाएगा कि दुनिया क्या है ? पर लड़का अपने नाना की एक न सुनता और बार-बार दुनिया देखने की रट लगाता ।
एक दिन लड़के के नाना ने कहा, "चलो आज मैं तुमको दुनिया दिखाता हूँ" । इसके बाद लड़के के नाना ने अपना घोड़ा लिया और लड़के के साथ पैदल ही चल दिए । पैदल चलते-चलते वे तीनों एक गाँव में प्रवेश किए । उस गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा सठिया गया है, घोड़ा लिया है फिर भी खुद पैदल चल रहा है और लड़के को भी पैदल चला रहा है ।
उसके बाद लड़के के नाना ने लड़के को घोड़े पर बिठाया और खुद भी सवार हो कर दूसरे गाँव की ओर चल दिए । दूसरे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, एक घोड़ा लिया है और देखो लड़के के साथ कैसे तन कर बैठा है । यह तो इस वेजुबान घोड़े की जान ले लेगा ।
उसके बाद लड़के के नाना ने लड़के को घोड़े से उतार दिया और खुद सवार होकर तीसरे गाँव की ओर चल दिए । तीसरे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, खुद घोड़े पर सवार है और नन्हीं जान (लड़का) को पैदल चला रहा है । इसके बाद लड़के के नाना घोड़े से उतर कर लड़के को घोड़े पर बैठा दिए और चौथे गाँव में प्रवेश किए । चौथे गाँव के लोग आपस में एक दूसरे से कहने लगे कि यह बूढ़ा तो सठिया गया है, लड़के को घोड़े पर बैठा दिया है और खुद हाँफते हुए लगाम पकड़ कर चल रहा है, लड़का तो पैदल भी जा सकता था या ये दोनों भी तो बैठकर जा सकते थे ।
इसके बाद दोनों घोड़े पर सवार होकर घर पहुँचे । लड़के के नाना ने लड़के से कहा कि देखा दुनिया ! यही है दुनिया । कुछ भी करो दुनिया कुछ न कुछ बोलेगी ही । दुनिया में किसी भी प्रकार से पूर्ण यश नहीं मिलता ।
अगर आपको अपनी मंजिल पानी है तो प्रयासरत हो जाओ,यह मत सोचो कि दुनिया क्या कहेगी क्योंकि दुनिया कुछ न कुछ जरूर कहेगी ।

--प्रभाकर पाण्डेय

Views: 470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 10, 2010 at 9:12am
प्रभाकर भैया , बहुत ही शिक्षाप्रद लेख पोस्ट किया है आपने , बहुत बहुत आभार,

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 10, 2010 at 1:37am
सुन्दर सन्देश देती हुई कथा..........
Comment by विवेक मिश्र on July 9, 2010 at 6:17pm
बिलकुल सही सन्देश मिलता है. सुनो सबकी; करो अपने मन की..
Comment by Neelam Upadhyaya on July 9, 2010 at 2:48pm
जी प्रभाकर जी । आपने बिल्कुल ठीक कहा । आप कुछ भी करें - अच्छा या बुरा - लोग कुछ न कुछ टीका-टिप्पणी जरूर करेंगे । हम किसी को रोक भी नहीं सकते ऐसा करने से । तो ऐसे में यही ठीक है कि जो उचित हो वही किया जाए । अपने गंतव्य तक पहुँचने के लिए चलना तो पड़ेगा ही । अब मंजिल पानी है तो यह सोच कर कि चाल टेढ़ी है या चाल धीमी है, रुक नहीं सकते । और अगर रुक गए तो गंतव्य का क्या ? इसीलिए अगर आपको अपनी मंजिल पानी है तो प्रयासरत होना ही पड़ेगा । कितना सही कहा है -

"कुछ तो लोग कहेंगे
लोगों का काम है कहना
छोड़ो बेकार की बातों में कहीं
बीत न जाए रैना"

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
19 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service