For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इसमें हमारा यथार्थ है,
जो बची खुची आक्सीज़न में,
सांस लेता है,
और इसमें है कल्पनाओं का भण्डार,
जो आँख खोले है,
पर बीच बीच सोता है;
इसमें ही भावनाओं का अम्बार है,
थोड़ी हंसी है,
थोड़े हैं आंसू,
एक चहकता परिवार है;
इसमें ही मन है,
चाहतों का दर्पण है,
जिसमे शक्ल नहीं दीखती,
पर इनपे सब अर्पण है...
इसमें हमारा कल है, आज है,
और कल का मनन है,
और इसमें हम कितना ही झगड़ लें,
इसमें ही अमन है,
यूँ तो ये बहुत छोटा है,
पर इसमें कितना कुछ भरा है,
ये शायद जादुई है,
क्योंकि सच्चा है, खरा है,
ये किसकी माया है,
ये कैसे रचाया है,
कि इतने छोटे से डिब्बे में,
जीवन के हर पहलू की,
लचकती एक डाली है;
और हम कितना भी भर लें,
ये डब्बा,
फिर भी खाली है.............




Views: 428

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by neeraj tripathi on June 5, 2011 at 8:34pm
शुक्रिया डॉ संजय जी
Comment by Dr. Sanjay dani on June 5, 2011 at 3:56pm
यथार्थ की एक अलग नज़रिये से अभिव्यक्ति के लिये मुबारकबाद्।
Comment by neeraj tripathi on June 4, 2011 at 3:06pm
योगराज जी एवं बागी जी...आप दोनों का आभार

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 4, 2011 at 12:03pm
जीवन को इस नज़र से देखने का यह प्रयास बहुत सुन्दर लगा नीरज त्रिपाठी जी - साधुवाद स्वीकार करें !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 4, 2011 at 9:01am

इतने छोटे से डिब्बे में,
जीवन के हर पहलू की,
लचकती एक डाली है;
और हम कितना भी भर लें,
ये डब्बा,
फिर भी खाली है.............

 

वाह वाह, बहुत खूब भाई नीरज जी, बहुत ही सार्थक बात कह दी है आपने इन अंतिम पक्तियों में , पूरी रचना बहुत ही सुंदर बन पड़ी है , बहुत बहुत बधाई इस शानदार अभिव्यक्ति पर | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service