For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 30

कल से आगे ...

सभाकक्ष में सुमाली के साथ एक अपरिचित व्यक्ति भी प्रतीक्षारत था। वज्रमुष्टि, प्रहस्त और अकंपन भी उपस्थित थे। रावण के प्रवेश करते ही सब उठ कर खड़े हो गये। रावण अपने सिंहासन पर आसीन हुआ। अभिवादन की औपचारिकताओं के बाद उसने सुमाली से पूछा -
‘‘यह अपरिचित सज्जन कौन हैं मातामह ?’’
‘‘लंकेश्वर ! ये तुम्हारे भ्राता कुबेर के दूत हैं। उनका संदेश लेकर आये हैं।’’
‘‘महाराज ! मैं श्वेतांक हूँ, लोकपाल, धनपति कुबेर का दूत !’’
‘‘कहिये भ्राता कुशल से तो हैं ? और भाभी ?’’ रावण ने सम्मान से पूछा।
‘‘हाँ महाराज ! सब कुशल से हैं।’’
‘‘क्या संदेशा भेजा है भ्राता ने ?’’
‘‘लोकपाल ने कहा है कि आपकी उच्छृंखलतायें बढ़ती जा रही हैं वे अब सह्य नहीं होंगी।’’
‘‘यह कैसा अनर्गल संदेश लाये हो दूत ? कैसी उच्छृंखलतायें ? रावण ने तो कोई धृष्टता नहीं की।’’ रावण ने आश्चर्य से कहा। उसका स्वर संयत था किंतु फिर भी चेहरे पर तनाव की लकीरें दिखने लगी थीं।
‘‘दूत ! तुम्हारी यह धृष्टता तुम्हें भारी भी पड़ सकती है। इन अनर्गल आरोपों से तात्पर्य क्या है तुम्हारा ?’’ यह स्वर सुमाली का था।
‘‘पूरी बात सुन लें महाराज !’’ दूत ने कहा- ‘‘मैं तो दूत हूँ जो संदेशा मुझे लोकपाल ने दिया वह आप तक पहुँचा रहा हूँ। आगे जो उत्तर आप देंगे वह लोकपाल तक पहुँचा दूँगा।’’
‘‘कहो पूरी बात।’’ रावण बोला।
‘‘लोकपाल ने कहा है कि आपके पोत अनावश्यक रूप से अलका को पोतों को रोक कर परेशान करते हैं। अत्यधिक शुल्क वसूल करते हैं। उन्हें विलम्बित करते हैं और बहुधा उनके कर्मचारियों को प्रताड़ित भी करते हैं। और ...’’
‘‘बस ! तुम्हारा अनर्गल प्रलाप हमें सहन नहीं है।’’ सुमाली चीखते हुये बोला।
‘‘हाँ ! हाँ ! सम्राट् यह तो सीधा लंका के खिलाफ दुष्प्रचार है। कुबेर यदि वैमनस्य ही बढ़ाना चाहते हैं तो स्पष्ट कहें, अनर्गल आरोप क्यों लगा रहे हैं ?’’ वज्रमुष्टि और अकंपन ने सुमाली से सहमति व्यक्त की।
‘‘महामंत्री !’’ रावण प्रहस्त से संबोधित हुआ - ‘‘ये क्या कह रहे हैं ?’’
‘‘सम्राट् ! मेरे संज्ञान में तो ऐसी कोई बात आज तक नहीं आई। लोकपाल कुबेर को कोई भ्रम तो नहीं है, या वे जानबूझ कर विवाद उत्पन्न करने का प्रयास कर रहे हैं।’’
‘‘दूत ! सुन लिया ?’’ रावण ने कहा।
‘‘सुना महाराज ! किंतु संभव है कि आपके संज्ञान में न हो, महामंत्री प्रहस्त के संज्ञान में भी न हो किंतु फिर भी कनिष्ठ अधिकारी अपने विवेक से ही आने-अनजाने ऐसा कोई कृत्य कर रहे हों जिससे हमारे पोतों को असुविधा हो रही है। कोई भी मत स्थिर करने से पूर्व भली प्रकार जाँच कर लेते तो उचित रहता। अलका के पोतों पर आक्रमण तो हो रहा है लंका में। जब भी पोत लौटते हैं तो उनके कर्मचारी इससे व्यथित होते हैं।’’
‘‘तो अपने पोत कर्मचारियों की निगरानी करें। वे निश्चय ही अपने किसी अपकृत्य को छिपाने के लिये कुबेर को भ्रमित कर रहे हैं।’’ सुमाली ने क्रोध से कहा।
‘‘ऐसा नहीं हो सकता वे सब अत्यंत अनुभवी और विश्वसनीय कर्मचारी हैं।’’
‘‘ऐसा तो नहीं इसके पीछे देवेन्द्र की कोई कुटिल चाल हो ?’’
‘‘नहीं ऐसा नहीं है। इसमें हमें कोई शंका नहीं है। देवेन्द्र को हमारे साथ कुटिलता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।’’
‘‘देवेन्द्र, देवेन्द्र हैं। कुटिलता उनका स्वभाव है। वे अकारण ही कुटिलता करते रहते हैं। और फिर रावण से तो उन्हें विशेष द्वेष है। रावण अपकीर्ति के लिये वे कोई भी कुटिल चाल चल सकते हैं।’’
‘‘नहीं भद्र ! ऐसा नहीं है।’’
‘‘तो फिर दूत तुम हम पर किसी कूट उद्देश्य से पे्ररित होकर निराधार आरोप लगा रहे हो। हम तो सदैव यही चाहते हैं कि हमारे भ्राता के साथ मधुर संबंध बने रहें। हमारे ऊपर उनकी छत्रछाया बनी रहे किंतु इस तरह के निराधार आरोपों के चलते यह कैसे संभव हो सकेगा ?’’ रावण बोला।
‘‘महाराज हम निराधार आरोप नहीं लगा रहे।’’
‘‘क्या प्रमाण है इसका ?’’
‘‘हमारे पोत कर्मियों के कथन, वे कदापि मिथ्या भाषण नहीं कर सकते।’’
‘‘तो तुम कहना चाह रहे हो कि मातामह झूठ बोल रहे हैं ?’’
‘‘सम्राट् ! यह सरासर मेरा अपमान है। आप अब समर्थ हो चुके हैं। सुमाली का कार्य समाप्त हो चुका है, अब आप मुझे सेवा से मुक्त कर दें।’’ सुमाली बोल पड़ा। वह इस मौके को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता था। वह रावण के मन में कुबेर के लिये इतना क्रोध भर देना चाहता था कि वह कुबेर पर आक्रमण को तत्पर हो जाये।
‘‘यह आप क्या कह रहे हैं मातामह ? रावण को लंकेश्वर बनाने वाले आप ही तो हैं। आपके परामर्श के बिना रावण क्या है ? ऐसे मूर्खतापूर्ण आरोपों से आप यूँ विचलित होने लगेंगे तो लंकेश्वर का क्या होगा ?’’
‘‘फिर क्या करूँ पुत्र कुबेर तुम्हारा बड़ा भाई है। वह प्रकारान्तर से मुझ पर आरोप लगा रहा है। ऐसी स्थिति में मेरा अलग हो जाना ही उचित है। अन्यथा कल को तुम भी यही कहोगे कि मातामह के कारण मेरा भाई से बैर हो गया।’’ सुमाली भावनाओं को और उभाड़ने के लिये सम्राट् से पुत्र पर आ गया।
‘‘रावण कुछ नहीं कहेगा। रावण का रोम-रोम मातामह का ऋणी है। मातामह के सम्मान के लिये यदि रावण को अपना सम्पूर्ण रक्त भी बहा देना पड़े तो वह सहर्ष बहा देगा।’’
‘‘यह क्या कह रहे हो पुत्र !’’ सुमाली ने तप्त लौह पर चोट की ‘‘रक्त बहे तुम्हारे बैरियों का।’’
‘‘तो फिर आप अपने शब्द वापस लीजिये अन्यथा रावण भी पुनः उसी तपस्वियों के जगत में लौट जायेगा।’’
‘‘लिये पुत्र, लिये ! किंतु इतना ध्यान रखो कि तुम्हारे मातामह का अकारण अपमान न हो। अकारण कोई उन्हें मिथ्याचारी सिद्ध करेगा तो कैसे जियेगा यह वृद्ध ?’’
‘‘हाँ तो ... श्वेतांक ! स्पष्ट समझ लो कि हमने ऐसा कुछ भी नहीं किया है।’’
‘‘किंतु महाराज ...’’
‘‘कोई किन्तु-परन्तु नहीं। अब रावण को तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी। तुम जा सकते हो।’’ रावण उठता हुआ आगे बोला ‘‘मातामह ये अगर रुकना चाहें तो उचित व्यवस्था करवा दीजिये और यदि जाना चाहें तो वैसी व्यवस्था करवा दीजिये।’’
‘‘महाराज ! आपका यह रवैया उचित नहीं है। यदि आप नहीं मानते तो लोकपाल अन्य विधियाँ भी हैं जिनसे वह अपनी बात मनवा सकते हैं।’’ रावण के उठते-उठते भी श्वेतांक कहता चला गया।
‘‘कौन सी अन्य विधियाँ ? क्या कहना चाहते हो तुम ?’’ कक्ष से निकलने को तत्पर रावण रुक गया और फुफकार उठा।
‘‘महाराज आप स्वयं मनस्वी हैं।’’
‘‘क्या तुम हमें युद्ध की धमकी दे रहे हो ?’’ वज्रमुष्टि बोल उठा।
‘‘हम युद्ध की धमकी नहीं दे रहे। हम युद्ध कदापि नहीं चाहते किंतु अन्य कोई रास्ता न रहने पर ...’’
‘‘क्या ? एक बार फिर से तो कहो !’’ रावण का क्रोध बढ़ता जा रहा था।
‘‘कुछ नहीं महाराज ! हम युद्ध कदापि नहीं चाहते किंतु आपकी तरफ यदि इसी प्रकार की हठधर्मिता रही तो विवशता में वैसी भी परिस्थिति आ ही सकती है।’’
‘‘तो फिर कह देना भाई से कि अब युद्ध के मैदान में ही भेंट होगी। रावण भी युद्ध से डरता नहीं है।’’

क्रमशः

मौलिक एवं अप्रकाशित

- सुलभ अग्निहोत्री

Views: 536

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sulabh Agnihotri on July 31, 2016 at 12:16pm

आभार आदरणीया KALPANA BHATT Ji !

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 4:59pm

सुंदर वर्णन  आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
17 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service